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APPENDIX II.
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End.-एक पावे दोड़ करे गोरे उपरा उपर ॥ किन वेध कहो ए रंग ॥ एक लरे पानी से जुथ जुथ से ॥ देषो इनको जंग ॥ २१ ॥ पानी एसा उड़ावे जानों अंवर वरसावे ॥ षेल करने वीच में भंग ॥ क्या ए न थके एसे अंग पारस के ॥ अंग सामे पूतली अनंग ॥ २२ ॥ एक पेल छोड़े दूजी पर दौड़े॥ अंगन माए उरंग ॥ एक छिन में अरस पर से पेल जाए करे ॥ ईन वेद्ध अंग उमंग ॥ २३ ॥ परेकरमा करे आवै पल में फेरे आवे॥ पाए कदमों लगे सव संग केहे मेंहेमती सव रंगराती क्यों कहीं प्रेम तरंग ॥ २४ ॥ २१ ॥ लोषते भाई पूसीहाल दास ॥ १० १५ ॥ जो कोई लेपे या पढ़े तोन के पुमीहालदाम को प्रनाम पहूंचे कोटानी कोटी चरनों लागी के ॥ गंज गेरे।ह गोटा पूरा भयो सन वारे से तीस (१२३०) कुंवार सुदो पंचमी॥
प्रागट वानी के चौपाई ॥ ११२ ॥ केताव कीरतन के चौपाई ॥ ३६८ ॥
ताव सनंध के चौपाई ॥ २२८॥ केताव सिगार के परकरन एक ॥ २२५ ॥ केताव सागर के परकन एक चौपाई ॥ २२२ ॥ केताव परकरमा के चौपाई ॥ १०१५॥
ताके सव जमा कीए ॥ २०६० ॥ Subject.-ज्ञानोपदश । प्रेम वर्णन ।
No. 108(c). Pragata Bini by Mahimati. SubstanceCountry-made paper. Leaves-16. Siz0-5" x 41". Lines por page-9. Extent-180 Slokas. Appearance-Very old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhand Lakshmana Kota, Ayodhy.
Beginning.-श्री प्रगट वानी लिप्यते श्री राज जी श्री स्यामा वरसति है सदा सति सुष के दातार ॥ वीणती एक जो वल्लमो अंगना के आधार ॥१॥ श्री वानी मेरे पीउ की ॥ न्यारी जा संसार ॥ नीराकार के पार थे ॥ तिण पारों के भी पार ॥२॥ अंग वन कंठा उपजी ॥ मेरे करनां एही विचार ॥ ए संति वानी मथे के ॥ लीयो जो इनको सार ॥ ३ ॥ ईसा सार में के संति सुष ॥ सा में निरने करो नीराधार ॥ ए सुष देष ब्रह्म सिष्ट को ॥ तामें अंगनां नार ॥ ४॥ जब ष सुष अंग में प्रांवें ॥ तव छुट जांए वेकार ॥ गांव अनंद अषंड घर को ॥ प्राध्येरातीत भर. तार ॥ ५॥ अव लीला हम जाहेर करे ॥ जो मुष सै या हीरदें धरे ॥ पीछे सुख होसी समन ॥ पसरसी चौदे भवण ॥ १॥ अव सुनियो ब्रह्म सिष्ट विचार ॥ जो कोई निज वाननी सिरदार ॥ अपना धनी श्री स्यामा स्याम अपना वसाहो निजधाम ॥२॥