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आवे माने सह ॥ चैौदे तवक करें रद्द || ७ | ब्रह्म ईसक एक संग ॥ सा तो वसत वातन अभंग ॥ ब्रह्म सृष्टि ब्रह्म एक अंग ॥ ए सदा प्रद प्रति रंग ॥ २ ॥ पते दिन गए कै वंक ॥ सेा तो अपनी वुध मां फेंक ॥ अव कथनी कथों में इसक ॥ जाते छूट जाय सव संक ॥ २ ॥ वोए वोए ईसकनाथ पते दिन ॥ कै यों दहां गुन निरगुण || धीक धीक कपड़ो से तंन ॥ जो तन ईसक विन ॥ ४ ॥ ईसक नही मीने सोष्ट सूपन || जो दूहें चोदे भुवन ॥ ईसक पीया ने बताया || ईसक विना पीउ न पाया ॥ ५॥
APPENDIX II.
End.- रस प्रेम सरूप हें चिंत ॥ के विध रंग वे लंत ॥ वुध जाग्रत लै जगावती ॥ सुष मूल वता षत्नावती ॥ १२५ ॥ प्रेमसागर पूर चलावती ॥ संग सैंया का पीलावती ॥ पीया जो कहें इंद्रावती ॥ तेज तार तंम जात करावती ॥ १२६ ॥ तासेा महामती प्रेम ले तोलतीं ॥ तिन सा धाम दरवाजा पालावती ॥ सैया जाना धाम में पंठीया ॥ पता घर ही में जागें वेठीया ॥ १२७ ॥ श्री ॥
Subject.—पृ० १७- २५ इश्क अथवा भगवत्प्रेम अर्थात् भक्ति का निरूपण ।
२५-२७ ब्रह्मज्ञान ।
२८-५२ भक्ति मार्ग, शृंगार, गान, वाद्य, रास, नृत्य आदि वर्णन |
No. 108 (b). _Parikrama_by Mahāmati. Substance-Country-inade_paper. Leaves — (161 – 256) 95. Size-52" x 44. Lines per page —–9. Extent – 1,080 Ślokas. Appearance —Old. Character — Nágari. Date of Manuscript—San_1230 = 1816 A. D. Place of Deposit — Saraswati Bhandara, Lakshmana_Kota, Ayodhya.
Beginning.—केताब परकरमा लेपे हैं | भामे पेहेली || वड़ा चोंक साभा लेते हैं । वड़ो दरवाजे अंदर || वड़ी वैठक इत गोरोह की || आगू रसोई के मंदर ॥ १ ॥ दस स्याम सेत के लागते ॥ दस मंदिर सामीहार || ईन चोंक की रोसनी ॥ मावत नही झलकार ॥ २ ॥ कैनकंस के कटाव ॥ इन भोमे देषत ॥ दिन पंद्रा बेलें वन में || पंद्रा अरोगे ईत ॥ ३ ॥ ईन चोंक में साथ जी ॥ वोहोत वेर वेठत || आवत जात वन थे | वेठत इत चलवत ॥ ४ ॥ लाड़वाई के जुथी ॥ इत वाहात पेल. करत || वाहर अंदर चोंक में || वन माहोल सुष लेवत ॥ ५ ॥ वन मोहाल वेलास कां ॥ सुष गिनती में आवे नाहीं ॥ पनां कछू जुवां कर्हे सके । चुभे रहेत चित माहे ॥ ६ ॥ राज स्याम जो बैठक || वन थे फेरत वषत ॥ इन ठौर आगे के ॥ चौथी भूमे निश्त ॥ ७ ॥