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APPENDIX II.
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ऊधव के वचन सुनत अंग थहरात मुरछि परे क्षिति ज्यों पड़त तड़ि घनते घहरात मया पत्र उधैा सवै जानत स्याम सुभाउ कहा अंस यक राखि ह्यां चलु वृज यह उपाउ ॥ इति श्री प्रेमतरंगण्यां लकमीनारायण कृता उधौ कृष्ण सम्बादो नाम एकादशोऽध्यायः ११ ब्रह्मा शिव नारद सकल तिन्ह नहिं देख्यो डीठ ता मोहन सेा राधिका सुमन गुहावत शीश इति श्री भवरगीत सम्पूर्ण शुभमस्तु कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे दशम्य वुधवासरे मिदं पुस्तकं दुरगाप्रसाद कायस्थ हेतवे श्री लाल भवानीवक्त सिंह जीव ॥ सम्वत् १००३ जादृशं पुस्तक दृष्टं तादृशं लिखिते मया यदि शुद्धमशुद्धधा मम दोषो न दीयते श्री रामचन्द्राय नमः श्री हनुमतायनमः श्री राधाकृष्णाय नमोनमः ॥
Subject. -उदव का गापियों को धीरज देने के लिये वजगमन करना तथा उद्धव और गोपियों का वार्तालाप करना।
पृ०१-९-गुरुचरण वंदना, बज और वजवासियों की प्रशंसा, गोपियों का कृष्ण प्रेम, गोपी और कृष्ण और उधो (उद्भव) वजगमन की सूचना।
पृ० ९-२०-भगवान कृष्ण का उद्भव का व्रजवासियों के लिये माता पिता गोपी ग्वाल और श्री राधिका के प्रति यथोचित संदेशा दे व्रज भेजना। उद्धव का वृन्दावन की ओर जाना आदि कथाओं का वर्णन ।
ब्यौरा पृ० १-२-पद। पृ० ३-उद्धव का नन्दाद से मिलना।
पृ० ४-नन्द और यशोदा का कृष्ण के लिये विलाप करना, गोपियों से मिलना और कृष्ण का संदेशा सुनाना, श्री राधिका को कृष्ण का पत्र देना पौर ज्ञानयोग उपदेश करना।
पृ०६-उद्धव गोपी संवाद, गोपियों का उलाहना देना और 'योग' का खण्डन करते हुए अपने अनन्य कृष्ण प्रेम का परिचय देना।
पृ०९-भंवरगीत । एक भंवरे का घटनास्थल पर आना पार गोपियों का उसे कृष्ण रूप समझते हुए व्यंग वचन सुनाना और उलाहना देना।
पृ० १२-उद्धव का गोपियों से यह कहना कि निगमादि जिसे नेति नेति कहते हैं जो हमारा सर्वस्व है, उसे भला बुरा न सुनायो और न कोई उलाहना दो। गोपियों का यह कहना कि जिसे तुम योगी और ज्ञानी कहते हो वह स्वयं भागी और विलासो है और अपने कथन के प्रमाण में कृष्ण चरित्र का वर्णन करना।
पृ० १३-गोपियों के इस कथन से उद्धव का तिरस्कृत होना और इस मानसिक व्यथा से मुक्त करने के लिये श्री राधिका का उद्धव के प्रति आदरयुक्त सम्मानसूचक शब्द कहना।