________________
240
APPENDIX II.
__ पृ० १४--गोपियों का कृष्ण के लिये विह्वल होना और अनन्य प्रेम के वश गोपियों के रास में भगवान कृष्ण का प्रगट होना तथा उद्धव का आश्चर्य सागर में गोते लगाना, उद्धव का रासमंडल में घुसने के लिये लालायित हाना, गोपियों का यह कह कर कि तुम इसके अधिकारी नहीं हो, उद्धव को रासमंडल मे जाने से रोक देना, शिव जी का स्त्री वेश में रास करना आदि कथाओं का वर्णन करना और उद्धव का पात देख उन्हें भी स्त्री वेश का श्रृंगार कर रासमंडल में सम्मिलित कर लेना तथा रास करना। श्री कृष्ण का अन्तर्धान हो जाना और गोपियों का श्री कृष्ण के विरह में विह्वन और उन्मत्त होजाना। गोपियों का विरह देख पथिकों का चकित और विमाहित होना।
पृ० १९-गोपियों का उदव को कृष्ण के लिये संदेशा देना। पृ० २०-षटऋतु वर्णन, गोपियों का प्रारम विरह वर्णन करना।
पृ० २२-उद्धव का श्रीकृष्ण चरित्र और गोपियों के कृष्ण प्रेम का रहस्य पूछना तथा गोपियों का कृष्ण प्रेम वर्णन करना।
पृ० २५-उद्धव का कृष्ण प्रेम में निमग्न हो उन्मत्त हो वज मे मथुरा को विदा होना, मथुरा पहुंचना और श्रीकृषण से गोपियों का f. प्रेम और दुःसह विरह वर्णन करना।
पृ० २७-२८-उद्धव कृष्ण संवाद। No. 105. Lāla Khyāla by Lāla. Substance-Countrymade paper. Leaves-186. Size-10 inches x6 inches. Lines per page-12. Extent-1,500 Slokas. AppearanceOld. Character--Nāgarī. Placo of Deposit-The Public Library, Bharatapur State. ____Beginning.-श्री गणेसायनम ॥ भने नम । सुरज वर्णन ॥ कवित ॥ तेरी जो प्रकास ताकी सुंदर प्रकास गत आवत ही अवनी में होत है अराम लाल ॥ देवलोक दानव के जक्षन तै किनर के नर के जितेक लोक पावत है चैन जाल॥ धाम धाधा धाए जात अधिक अराम काम पूरव प्रकास पाप पुन्यन के होत ढाल ॥ एहा देव देव सुन ग्यान देव जक्तरूप जागत ही जागै सव सेावत हो से मै हाल ॥
____End.-पोंजरा सुघर तन पायकै सुहाय रह्यौ उछट उछाटन की छोड़े नाहि हट रे काम वस पाप अंग मुनीया लुभाय रूप हू जो नैन संग देष तामसी हो भट रे ग्यान कर ध्यान गहि पावत परम पद ताते भव ज्वाल मान लगै नाहि लट रे ॥ मान कह्यौ मेरौ मै तो को समझावत है। जाहा के वनायो जग ताही को न रट रे ॥ समापीत ग्रंथ सुभ ॥ लाल घ्याल यह नाम है जानत सकल जिहान अदवुत कथा प्रसंग की यातै प्रदवुत मांन ॥
Subject.-विविध विषय संबंधी स्फुट कविताएं।