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APPENDIX II. पृत है समीर को प्रचंड तेज भान के ॥ मारि किलकारि रिपु कटक मझारि दीन्हें शत्रुन विडार कीन्हें युद्ध घुमसान के ॥ केते मारे करण पकर गहि करण केते लागे झरन करण दनुजान के ॥ कहत लक्षण ॥२॥
____End.-अंजनिकुमार रन विदित उदार अति संकट विमोचन सकल भगतान के || राम के दुलारे दास हाजिर हजूर खास पाठो जाम पास सदा श्री भगवान के ॥ चिंतामणि कामधेनु दासन के जनकी लषन के सुषद प्राण त्राण के ॥ कहत लक्षण कवि योगिनी वैताल नाचे वाचे कोन असुर तामाचे हनुमान के ॥ ५१ ॥ इति श्री हनुमान जी के तमाचा समाप्तम् ॥ शुभं भूयात् ॥ जेष्ट वदी. प्रतिपदा रवा ॥ संमत १९०९ ॥ राम ॥
Subject.-श्री हनुमान जी को चरित्र प्रशंसा कवित्तों में।
No. 104. Prema-Tarangini by Lakshmi Narayana. Substance-Country-made paper. Leaves-28. Size-10 inches x 3g inches. Lines per page-8. Extent-700 Slokas. Appearance-Not old. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1903=A. D. 1845. Place of DepositThe Library of the Rājā of Pratāpagadha.
Beginning:-श्री गणेशाय नमः ॥ अथ प्रेम तरंगिनी लिष्यते ॥ चौपाई ॥ वंदो श्री गुरुचरण कमल रज जाते मम मन वसै सदा वज । वृजवासिन की कृपा जो पाऊं रमिक सुयश श्याम गुण गाऊं ॥ दोहा ॥ जेहि वृज मगु श्री राधिका विहरत श्याम सुजान सा रज विनु अंजन करगे सूझै निगम पुरान मांखि तनक तिल वीच ज्या भासत रूप अनेक कृषण अपरिमित चरित को त्यो वृज मंडल एक । याते जन ते नाहक भ्रमते मन ते त्याग सुर मंडित पानंदमै बज मंडल अनुराग शक्ति अवंत अखंड व्रत जे विहरै प्रभु संग गोपी जनको प्रेम गुन पमित अनादि अभंग तिन संग नित्य विहार युत धरत कृष्ण अवतार ज्यों ज्यों भक्कन के हिया होय प्रेम प्राधार कृष्ण ललित गुन कथन अरु प्रेम मगनता गात ताते और न जानवी जोग यज्ञ प्रवदात । प्रेम विरह संयोग अरु मान भंग के हेत माया तनु धरि मधुपुरी गये जु कृपा निकेत ॥ सारठा ॥ ९ ऊधौ उर अभिमान अमित ज्ञान को देखि प्रभु कोवे प्रेम प्रधान पठयो व्रज वनितान मैं ॥ इति श्री प्रेम तरंगिनी प्रथमाध्यायः॥ __End.–दोहा । वार वार ऊधौ कहत परतो मगन जदुवीर नाना नेत पुरान कहि सुधि नहि धरत शरीर यह विनोद दोउ मित्र का वजवासिन को प्रेम जग मंगल करि दुखित हरि कहत सुनत करि नेम अंतरजामी सवन के जानत सब की पोर माधौ सौ उधौ कह्यौ अध शिर दृग भरि नीर मोहन जो तुम तव किया सरद रैनि को रास सेा राधा उर धीर धरि गावत नित्य विलास माहन