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APPENDIX II,
प्रघटायो। समुझि परी माहि सो सव गायो ॥ याके सद प्रभाव तुम कोने । भये सियावर मनि पाधीने ॥ चिन्तामनि जो जग प्रगटाई। सुजन रंकता दूर गंवाई ॥ भये चार गुन विघन गंवाये । कृपानिवास सिय वल्लभ पाये ॥ दोहा ॥ वर अनन्य चिन्तामनी ग्रंथ ग्रंथसिरताज ॥ कृपानिवास सतगुरु कृपा कृत भव सिन्धु जहाज ॥१५॥ कृपा निवास उर जो हुति दीन्हीं श्री हनुमान । पान करी जिय जानि सुख मति अनुमान वखान ॥२॥ पढ़े सुने जिय समुझ ही करिहैं अर्थ विचार । परम उपासक पद लहै वृत्ति अनन्य दृढ़ धार ॥३॥ इति श्री अनन्य चिन्तामणि ग्रन्थे श्री हनुमत कृपालब्धे श्री कृपानिवास विरचितं दारिद्र विनाशकं नाम चतुर्थी गुण सम्पूर्ण ॥ श्री सरजू तटे युगल घाट लिखतं युगलानन्य शरलेन शुभम् || सीताराम ॥ Subject -साधन निर्णय-पृ०१-१३
तम प्रहार गुण-प्रथम गुण इष्ट प्रतिपादन-पृ०१३-२४ अवधि स्वरूप नित्यता निरूपणादि वर्णन रोग प्रहारादि द्वितीय गुण-पृ० २४-२८ ॥ अनन्य शरणागत लक्षण-पृ० २८-४० उपास्य धन दारिद् विनाशादि तृतीय गुण-पृ० ४१
चिन्तामणि प्रसंगादि वर्णन पृ० ४१-४६ ॥ No. 99(i). Lagana Pachīsī by Kripā-nivāsa. Substance -Country-made paper. Leaves-18. Size-92 inches x 41 inches. Lines per page-7. Extent-200 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari: Date of ManuscriptSamvat 1902 or 1845 A. D. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्री जानकी वल्लभाय नमः ॥ राग घनाश्री मूल ताल ॥ लगन की चाट विन मन गिरत न ऊंचो कोट ॥ मरद गरद द्वै दरद लगै कछु परवस गर पर पोट ॥१॥ मन गयंद माता विष मदिरा काई हाथ न पावै॥ ताको संगनि महा अंकुस ता पीतम पाय नवावै ॥ वांधि चौकरी मृग ला उरै सिंह सवल नहि डरिहै ॥ लगनि वोन को भर्नाक सुनै कह बिन मारे न मरिहै ॥ फनिय रूप लो जहर भरपी मन गहै कौन भयकारो ॥ लगन मंत्र वल प्रवल निवल है सेवत परय पिटारो ॥ उद्यो फिरत जग ठग मन षग लो काउ न सकै बिरमाय ॥ लगन वाज की झपप्पर जव छूटन को अकुलाय। नारि अमानी सील सयानी राषी
न दुराय । लगन कूटनी सावत रोवत मन पर हाथ विकाय ॥ मान वड़ाई मये