________________
APPENDIX II.
231
रानी सुषदानी ॥ महल विहारिनो सुरति उदारिनी सुषकारिनी सव मानी ॥ नवल किशोरी गोरी भारी थारी वय थुर बोली ॥ नव जोवन नव वाला तरुनो नवला पुष्पनि ताली ॥३॥
End.-सित रसमी सुपुनीतात्री जै मिथुला श्री मिति भाषिनी ॥ तुल्या. रूढ़ सुगूढ़ रहस्या दसधा फल रस चाषिनी ॥ रूपा या रूपेक्षा पक्षी रूचि क्रीड़ा रुकम मांगा ॥ सुता सुनैना मोद नाइक रस रति संगम गंगा ॥ ५७॥ राम रसालय रामत्वं भुज राम रता रामायन ॥ राम रसीली राम स्वरूपी रामा राम रसायन ॥ *कारी श्री वीज सुक्षमा सव साक्षी सानन्दी ॥ सुर्न मुषाकर सेव सुलभ संतमात्मानन्दी ॥ ५८ ॥ सहस नाम उचरे मैं निज हित जो हित चाही मुमरौं । हम रंग महल रस रहसि पियावा यह साधन सिद्ध हमारौं ॥ जोग जग्य तीरथ व्रतसाधन मुक्ति गेह यह आई ॥ सीता सहस्रनाम पाठ यह पढत सदा मन लाई ॥ अर्ध नाम जगतारनि हित श्री महस्रनाम जप जोई ॥ फल की संख्या वरने को कवि अर्ध नाम जप साई ॥ इति श्री जानकोसहस्रनाम श्री कृपानिवास कृत सम्पूर्णम् ॥
Subject.-श्री जानकी जी के सहस्रनाम आर उनके जपने का महात्म्य वर्णन ।
No. 99(11). Ananya Chintamani by Kripa-nivasa. Sub. stance-Country-made paper. Leaves-46. Size 10p inches x 5 inches. Lines per page-16. Extent-2,200 Slokas. Appearance-Very old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saraswati Bhandari. Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्रीजानकीवल्लभा विजयते ॥दोहा॥ श्री प्रसाद गुरु पाद भजि सव धन पाकर जानि ॥ विभिचारी मन रंक हित चिन्तामनि प्रगटानि ! तिमिर रोग दारिद्रता विधन विदारन हारि ॥ ओगुन घटि सुघटहि मुपद प्रगट करौं गुन चारि ॥२॥ जेहि मनि हित योगीश मुनि यतन करें लहि काय ॥ सा मनि अपनी जानि जन दई मोहि कहु साय ॥ ३॥ जपति जानको राम गुरु रसिक येक हो ध्यान ॥ इनको रहस अनन्यता विरच्यों मति अनुमान ॥४॥चौपाई॥ श्री जानकी वल्लभ रहस भक्ति की। पास करें तजि वास जगत की ॥ विन अनन्यता दृढ़ नहि हाई । अन्य अचरति परयो काई ॥ येक चित्त बहु ठार लगावै । निश्चै वस्तु मग्न महि पावै ॥ यथा रंक मांगत वहु टूका । श्रम अति रहे रहे पुनि भूषा ॥ भ्रमर लेत बहु कुसुमनि वासा । भ्रमति विपति मै नृपति न पासा ॥ विषरी मति पँचै गुर ग्यानी । जुगल उपास्य लहै सेा प्रानी ॥ है अनन्य सुमिरे सिय लालन । अपनी जान कर प्रभु पालन ॥ जन अनन्य सिय पिय को भावें । निगम अगम सा मुगम जनावै॥ ___End.-गुनग्राही सुषदाई स्वामी । सुजन सम्हारक अन्तर्यामी ॥ तुम सौ कौन दुराव विचारों। वाहर भीतर ध्यान तुम्हारो ॥ तुम इद्द मारग उर