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APPENDIX II.
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सूर हर अंधेरे सरजू का नाम लेत अघन मे लै हेरै सरजू सरि सार वेद वदे तारन की वेरे कृपा निवासी प्राण सदा सरजू तट डेरे ॥३॥
End.-सुरति संजुग उमग जुगल सांवल भिरै चाह तुरंगनि चढ़े चाप चावक वढ़े मरे छवि कवच अंग संग सजन घिरै भृकुटि कादंड घर चंड भाथा वरुणि निसित नाराच मुक पक्ष कसमम करै लगान अस्थि तीव वरचर्म सकुचादि कर सवरतर शक्ति दृगहरणी फिर फिर हाव नावक विपुल भाव गोला गलित उर जलै गुर्ज संसर्ग सिय के सिरै तरुन तमकन करै जङ्ग जै मन भरै विकट भट विवसदा सूरज सरि तरै अमित उर हेत संमर्ग सैन चडी तडी मर्जाद हति पेत कसि पुनि थिरै वंक प्रहलाद परसाद जै जै भनै जयति भारसि अलि निवास पास न टरै ४० झूलता न एमा सावलिया गुमानी रहारे लार लारे लाग्यो पावै एमा काई जानै कॉइ करसी लारे लारे लाग्या भावे आगे पाछे डाले . म्हारे घूघट पोलै नैना सा नैन मित्नावै एमा वांकी वांकी ताने गावै झुकि झुकि वीन वजावै कृपा निवासी रामा राम की नवला नाजर प्रीत सतावै ४१
(अपूर्ण) Subject.-राधाकृष्ण संबंधी शृंगारात्मक पद । No. 99 (o). Bhāvanā Pachisi by Kripil-nivasa. Substance -Country-made paper. Leaves--14. Size—9.1 inches x 15 inches. Lines per page-7. Extent-160 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Saras. wati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्री जानकीवल्लभा जयति ॥ प्रथमहि श्री प्रसाद जू सकल सपिन सिरमौर ॥ जिन के कर विहरत सदा दंपति स्यामल गौर ॥१॥ चंद कला गुन आगरी रहसि विचक्षण जान ॥ सुरुचि लाडिली लाल की सेवत समै समान ॥ २॥ विमला विमल विहार में रहत सदा लयलीन ॥ रहस संपदा लाल की प्रगटत चाह नवीन ॥ ३॥ मदन कला रस मदन सदन जुगल रस हेत॥ वदन प्रसंसा को करै अडिग भाग रस पेत ॥ ४॥ विस्व मोहनी एक रस मोहि रही पद कंज ॥ सिय वल्लभ की माधुरी भरी धरी दृग पुंज ॥५॥ उर्मिला उर पति सुष वसै पिय प्यारी अनुकूल ॥ जुगल वदन निरषत षिले चन्द कमादिनि फूल ॥६॥ चंपकला रस चौपकी माना भरी भंडार ॥ लाल लाडली सुष सदा देषत नित्य विहार ॥ ७॥
End.-अष्ट ममय सुष भावना पुनि अनन्य श्रुति नीति ॥ तिन में पच्चिस 'च रचि मन समझावन होत ॥ २३ ॥ इनमें जो कृपा करै पाठ करै नित प्यार ॥ कृपा जानकी लाल की लहे महल अधिकार ॥ २४ ॥ मया प्रसाद पास्वाद मुष