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APPENDIX II.
अविचल ध्यान । घटे लटे छीजे नहीं दिन दिन दूना जानि ॥ ३ ॥ चैापाई ॥
गुरु
गुरु के शब्द विचारै ॥ त्याग प्रसार सार को धारै ॥ सद्गुरु चरन मनावा भाई || जासी दुविधा दुरमति जाई ॥ दुरमति का मैं कही विचारा || दुर कहिए कौन प्रकारा || दुरमति कहिये तीन प्रकारा ॥ यक झूठी है सांची सारा ॥ झूठी दुरुमति या गुरु समुझावै ॥ जन निवास गुरु कृपा से पावै ॥ हरि गुरु पूर तुच्छ जग जानै ॥ सांची छाड़ि झूठ नहिं मानै ॥
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End. – मैं अभिमानी नीच मति कछू न जानों भेव । श्री निवास सद्गुरु कृपा हरि गुरु येकहिं सेव ॥ भवसागर में बूड़ते सद्गुरु पकरी वांह । श्री निवास विश्राम लै सद्गुरु चरनों मांहि ॥ ता सुख सुग्पति नगर में, ता सुष सुरपति धाम । श्री निवास सुष पाइये सत गुरु चरन सुनाम ॥ १६६ ॥ इति श्री सद्गुरु महिमा श्री श्री परमोपासक रसराज पास श्री कृपानिवास रचित सम्पूर्ण ॥ शुभं भूयात सदा पठतः ॥ दोहा ॥ अवध रसीले कुञ्ज मधि विपिन प्रमोद विलास || प्रगट अटारी वास कर लिया ग्रन्थ सुषरास ॥ युगत्न अनन्य सरन नवल नाम मार गुरु दोन्ह । विदित सुराम गोपाल वर, मम रुचितहि जग लोन्ह || श्री श्री स्वामी सर्व पर जीवाराम कृपाल । तिनको सेवक तुच्छ मैं जानव रसिक रसाल || श्री चन्द्रकलायै नमः ॥ श्री सद्गुरु सीता रामेभ्यो नमः सीताराम ॥
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Subject. - सद्गुरु की महिमा, वन्दना, गुण, लक्षण आदि ।
No. 99(b) Ashta Kāla Samaya Jana Vidhi by Kripānivāsa. Substance-Country-made paper. Leaves-20. Size– 94 inches x 3 inches. Lines per page —11. Extent— 650 Ślōkas. Incomplete. Appearance-Old. CharacterNāgari. Place of Deposit-Saraswati Bhaṇḍāra, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.—श्री जानकीवल्लभो विजयतेतराम श्री हनुमत प्रसादाय नमः ॥ श्री अष्टकाल समय जन विधि लिष्यते चाताल || पूरण ब्रह्म सदा गुरुदेव देवन पति श्री हनुमत महाराज जनमनरंजन सब दुख गंजन सृजन सम्हारन काज सरण उवारण विघन विदारण दीनन कैं तारण जगत जहाज कृपा निवासी तेरी जनम जनम चेरी मेरी तो तुम्हें प्रभु लाज १ जानकी चरा हरण दुख द्वंद फंद जग सरणं सुखद सद वन्दन करण मनोरथ तरण कुतम पथ दरण ताप हिय चंदन पावन परम पद भावन रसद शुद्ध सुबुद्धि बढ़ावन कुबुद्धि निकंदन कृपा निवासी मन वसत समन श्रम दमन ग्रसद भ्रम फंदन २ कौन हरै प्रवल पाप सरजू विन मेरे नख सिख से दूर किए जनम जनम केरे जाग जज्ञ ज्ञान क्रिया तोरथ बहुतेरे करि देषे सबहीं दुरित प्रावत नहिं नेरे चन्द जैसे ताप हरे