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APPENDIX II.
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Manuscript-Samvat 1883 or A. D. 1826. Place of Deposit Goswami Radha Charana Ji, Brindabana. ____Beginning.-From page 2–दासी वृन्दावन कुवरि किशोरी शरणागत की लाज निवहिये । राग भैरा ८ देह धरे नल हो वन्दावन महा मूढ़ अज्ञान नारकी याही वृथा खायो अपना तन आवागमन रहत ता नर को त्रिविध ताप करि प्रसत सदा मन विपिन कृपा विन दास किशोरी कहां पावै वृजचन्द शरण कत । राग रामकली ९ रूपक लाल दीजै वृन्दावन को वास राधाकृष्ण गुण गाऊ छिन छिन वृथा नर न पाइहै। स्वास निरषत रहैकुंज तरु शाषों अरु पुनि रास विलास करौं स्नान श्री जमुना जल में वृज रज मांहि निवास श्री भागोत सुनो नित प्रवर्णन संत सीत ले करी हुसाल (हुलास) श्री ब्रजचंद विहारी से विनती करत किशोरी दास ॥१॥ ____End.-वरषेउ मार्ग मेह देह की संभार नाहै माह अति आनन्द की शोभा उलमत हैं ॥ मणि की अटारी जारी रंध्रन पवन भारी पलका पै राधिकारमण विलसत हैं ॥ सिंजित मनित खानि भनित शग्द रानि भांह को विचित्र वानि तानि दरसत है ॥ नैन की चपलताइ खंजर की लड़ाई मनोहर सुघराई रंग वरसत हैं ॥ १२ ॥ राधिका रमण रस सागर सरस रात पड़त दिवस रैनि चैन नाही मन में ॥ सेवन की अभिलाष राखत छिन ही छिन विनु दर्शन तफत वृन्दावन मैं । असे बड़ भागा पै करत कृपा अमित निरर्षे युगल हित पुलकित तन मैं । मनोहन करें आस पास नित निकट में रहे श्री गोपाल भट परिकर में ॥ १३॥ अडिल्ल । संवत सौ सौ सतावन जानि के। सांवन पंचमी महोत्सव मानि कै॥ निरषि राधारमण छवि लढती लाल को। हारि हा मनोहर रस पूरन वन विचारी ख्याल को ॥ १०१४॥ इति श्री राधारमण रस सागर सम्पूर्ण । सं० १८८३ का श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु श्री नित्य प्रभु श्री अद्वैताचार्य श्री गौरभक्त वृन्दं मर्पयामि ॥ श्री जी ॥
Subject -श्री राधाकृष्ण का श्रृंगार वर्णन।
No. 99 (a) Sad-guru Mahima by Ksipā-nivāsa of Ayodhyā. Substance-Country-made paper. Leaves-6. Size-10 inches x 4 inches. Lines per page-12. Extent-200 Slokas. Appearance--Old, Character-Nāgari. Place of DepositSaraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya. ___Beginning.-श्री जानकीवल्लभो विजयतेतराम ॥ श्री सद्गुरुमहिमा लिख्यते ॥ श्री गुरुचरन प्रनाम धूरि धरौं ध्यान उर मांह ॥ मति मलीन निर्मल करों उदै भान तम जांहि ॥ १॥ गुरु मंत्री गुण पाप तन प्रणमा मन तजि मान । कृपा निवास सिकता सुमति कृपया मेरु समान ॥ २॥ गुरु सम दानी कौन जग