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APPENDIX II..
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गरिम गरूर ॥२॥ अरुनोदय.सेभित चरन संभु तिहारे मंजु ॥ पाइ तिन्हें निसि 'घोसह फूल्यो हो तला कंज ॥ ३॥ षटकुल पाण्डे पहितियां भारद्वाजी वंस ॥ गुनि निधि पाइ निहाल के वन्दो जगत प्रसंस॥ ४॥ रस गुन धुनि अरु लक्षना कवित भेद मति लाल ॥ वालवोध हितकर सदा कीन्ही रसकल्लोल ॥५॥ अथ रसाः प्रतिपाद्यते भाव विभाव अनुभाव प संचारी सुषदाइ । भरत सूत मत कहत है रस के सकल सहाइ ॥ ६॥ भावादिक ए होत है नौहू रस के हेत ॥ ताही ते परगट इन्हें पहिले ही कह देत ॥७॥ भाव लो० ॥ रस अनुकूल विकार को भाव कहत कवि गौत ॥ इक मानस सरीर इक द्वै विधि हात उदात ॥ ८॥
End.-प्रसाद ॥ जथा ॥ सरद चंद सारद कमल भारद हात विशेषि ॥ छवि छलकत झलकत वदन लत्नकत मुनि मन दंषि ॥ २४२॥ या में परुषा कामना उपनागरिका होइ। उदाहरन कोन्हे न मैं क्रमे (न) जाने। साई ॥ २४३ ॥ रीति चारिहु दंस की सा समास ते हाइ ॥ भाषा में याते न मै बरनी सुमति विलोइ ॥ २४४॥ इति श्रीमद्वंसीधरात्मज कवि करन विरचितं रसकल्लोले रस धुनि व्यंगादि निरूपनं नाम सम्पूर्ण शुभमस्तु संवत १८९० भाद्र मासे कृष्ण पक्षले एकादसी ॥
. Subject.-रस निरूपण । ___No. 96 (a) Rasika Priya by Kesava Disa. SubstanceCountry-made paper. Leaves-68. Size-92 inchos x52 inches. Lines per page-17. Extent-1,032 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of CompositionSamyat 1648 or A. D. 1571. Place of Doposit-Sótha Chandra Saikara Ji, Anupasahar, District Bulandasahar.
___Beginning.-श्री गणाधिपते नमः॥ गापोजन वल्लभाय नमः । अथ रसिक प्रिया लिष्यते ॥ एकरदन गजवदन सदन वुधि मदन कदन मुत गवरी नंद
आनन्द कन्द जगवंद चंद युत मुखदायक दायक सुकीर्ति गुणनायक नायक खलघायक घायक दरिद्र सब नायक लायक गुरु गुण अनंत भगवंत भव भगति वंत भव भय हरन जय केशवदास निवास निधि मुलम्वादर प्रशरन शरन १ श्री वृषभान कुमारी हेत श्रृंगार रूप मय वास हास सरस हरे मातु वन्धन करुनामय केसी प्रति अति रुद्र वीर मारौ वत्सासुर भय दावानल्न पानु पोयो वीभत्स बकी उर अति अति अद्भुत वंचिवरंचि मति सांत सुसंतन सात्रि चित कहि केसव सेवहु रसिक जन नवर समय वृजराज नित २ नदी वेतवेतीर तहां तीरथ तुंगारण्य । नगर औड़छो बहु बला धरणी तल में धन्य. ३ पाश्रम च्यारि वसि तहां च्यारि वर्ण शुभ कर्म तप जप विद्या वेद विधि सबै वढ़े धन
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