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APPENDIX II.
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घोष मुंष लुलित अलि विदलति कमल कलीन ॥ ५॥ जाहि भजत सुष रूप भव मानत मुकति समान ॥ तिहि रघुवीरहि सेइ को मांगत मुकति निदान ॥ ६ ॥ रूप लुनाई ललित नव जोवन कलित उदाम ॥ राम निरषि सुर बाम सुठि कति काम किहि काम ॥ ७॥
End.-हग भरि दुलहिहि दैष तन दुलह भरे समाज । तनक कनषियनि लषि भरत मन ही मन सुष साज ॥ अटकि रहे वहु दिननु ते पटकि विरह की मोट ॥ तरफरात दृग दुहुन के अन्तर पट की ओट ॥ ४७६ ॥ सरस परस्पर देषिवो उसरै अन्तर चीर ॥ कह्यो पुरोहित पहल ही दम्पति काम अधीर ॥ ४७७ ॥ मिला चढ़ाई नववधू वामन विधिहिं विसेषि । ब्याह विपति मैं मगन हूं हंसो नाह मुख देषि ॥ ४७८ ॥ जननी सुता पयान पथु रचवति प्रांसुनि कीच ॥ सुता मुदित रूकै कदित धरति न जल दृग बीच ॥ ४७९ ॥ परत तरल तडिता तरपि सव मूदत सति नैन ॥ चुंवति जुक्ती जार मुष वक्ष अधिक इमि मैंन ॥ ४८० ॥
. (अपूर्ण) Subject.- श्रृंगार वर्णन। ___No. 94. Kamala Prakasa by Kamala Nayana. Subs. tance-Country-made paper. Leaves-66. Size-9 inches x 7 inches. Lines per page-26. Extent-2,960 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of Composition-- Samvat 1835 or 1778 A. D. Place of Deposit - Rādhā Chandra Vaidya, Badé Chaubé, Mathurā.
____ Beginning.-श्री गखेशायनमः ॥ अथ कमला प्रकास कमल नयन कृत लिष्यते ॥ गनपति मनिपति गंगपति गरुडपति सिरनाय ॥ सरस्वती पृनि फणपती देहु सुग्रंथ बनाय ॥१॥ छप्पय ॥ गिरपति सुतहि मनाय गिरा गुरु गुरुडासन पनि ॥ गंगा गोमती गावति सती अरु गिरि कंचन मुनि ॥ गाई ग्वाल अरु गउ व गुसांई ईसहि गाऊं गोविन्द गन गुन गरुव मुमरि चरणनि चित लाऊं ॥ गीता पनि गोदावरी गोवर्द्धन ग्यानी सुजन ॥ कमला प्रकास ग्रंहि करौं वकतुण्ड धरि ध्यान मन ॥२॥ अजर अमर सुर असुर नाग नर हरि नर किन्नर ॥ नू नर हरिहर सुघन सुतरुवर वर विमल मरोवर || मीन मकर थिर अथिर सबै पाइनि सिर नाऊं ॥ चरहू अचर तिन्हैं तु रैनि दिन मुष करि गाऊं ॥ कमला प्रकास ग्रन्थहि करी कृपा करी है। दीन जन ॥ लम्बोदर असरण सरण दुरित हरन धरि ध्यान मन ॥ ३॥ * * . . .
॥ कवि का आत्म परिचय ॥ "कायथ सकसेना विदित तनय जु कासीगम । भाषा करो जु अन्य यह कमलनयन तिहि नाम"।