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कारी कांड सुकवि विस्तार किया ॥ तासों सीताराम जुगल मुहि करहु प्रसाद समेत हियैौ ॥ १५ ॥ व्रजराज कुंवर विराजई परताप सिंघ उजागर ॥ तिहि हेत विरचित कवि कलानिधि ग्रन्थ बहुगुन आगरौ ॥ इक सातवां यह भाग उत्तर का नाम उदाम है तहं सर्ग पूरिय विंशत्यधिक जह कथा अति अभिराम है ॥ १६ ॥ इति श्री व्रज मण्डल मंडलीक महाराज श्री वदन सिंघ जी सुत श्री परताप सिंघ प्रेम समुद्भव श्री रामायणे उत्तर कांडे भाषायां कवि कलानिधि कृतायां विंशत्यधिकशततमः सर्गः ॥ १२० ॥ सं० १८२८ वर्षे ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे पंचभ्यां रविवासरे वैरगढ़ मध्ये महाराज कुंवार श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री प्रताप सिंघ जो तेन इदम् शास्त्रं स्वकीय पठनार्थं ठाकुर जी श्री श्री श्री श्री श्री लालसिंघ जी किंवा परोपकारार्थम् कारायितं चिरं० ॥
APPENDIX II.
Subject . - वाल्मीकीय रामायण के उत्तर काण्ड का हिंदी पद्यात्मक अनुवाद |
No. 93 (e) Rāmāyana Suchanika by Krishna Rāma Bhatta or Kalānidhi. Substance- Country-made paper. Leaves--4. Size - 5Î inches x 42 inches. Lines per page-- 10. Extent -- 30 or 35 Ślokas. Appearance -- Old. Character -- Nagari. Place of Deposit--The Public Library, Bharatapur State.
Beginning. - श्रीमते रामचन्द्रायनमः ॥ राम ॥ श्रीराम जी ॥ पूरन ब्रह्म राम दसरथ गृह प्रगट भये त्रिभुवन हरबाई | वाल केलि वोहा कीन अवधि मैं स सुधि कौसिक ने पाई | आय नृपति से मांगि चले ले मगवासिन सुष दे दाउ भाई || मारि ताडिका पढ़ि विद्या पुनि असुर मारि मुनि जग्य बढ़ाई ॥ गतमतिय कुं त्यारि जनक ग्रह तारि धनुष जय माल सुहाई ॥ तव श्री अवधि नाथ तहां आए किये विवाह यथा श्रुति गाई ॥ चारौं भ्रात व्याह पुनि मारग भृगुपति (को) बड़ गर्व घटाई || वाहात दिवस भई केलि अवध मै मात पिता जन करत बड़ाई || केकई वर नृप वचन सुनत प्रभु चले राज तजि वार न लाई || लै सिय संगल सव के मन गुह मिलि गंग पार प्रभु जाई ॥ भरद्वाज मिलि चित्रकूट मै किये विहार रतिपति सकुचाई | आप भरत करि क्रिया नृपति की चले मातु गुग् सव समुदाई ॥ गुह मिलि उतर गंग पुनि के रह चित्रकूट लषि ताप वुझाई ॥
End.—गज विभीषण सीय अग्नि तै लै प्रभु वानर लिये जिवाई ॥ चढ़ि पुष्पक सिय हित किशकिंधा मित्र वधू संग हेतु बुलाई ॥ भरद्वाज मिलि हनू भरत सुनि आगम ग्रानन्द न समाई ॥ भरत भ्रात गुर मात सुजन लें मिलन परस्पर पें सुष रह्यौ छाई || पुनि श्रीराम राज सुष दोनों अरिहन भरत विजै करवाई ॥