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APPENDIX II.
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चरन सरोज अलि परताप सिंघ विराजई ॥ तिहिं हेत रामायन मनोहर कवि कलानिधि नै रच्या ॥ तहं युद् कांडहि सत रुची तिस ग्रन्थ फल वर्नन सच्यौ ॥ १३८ ॥ संवत्सर १८२० वर्षे वैसाष मासे तिथा शुक्ल पक्षे सप्तम्या बुध वासरे ॥ इदम् पुस्तकम् जुलकर्ण मिश्रण लिम्वितं डहरे ग्राम निवासिनं शुभं भवतु दीर्घायुः॥
___Subject.-वाल्मीकीय रामायण के युद्धकांड का पद्यमय हिन्दी भाषान्तर।
__No. 93 (d) Ramayana Vilmiki, Uttara Kanda by Kala - nidhi. Substance---Country-made paper. Leaves--248. Size--11 inches x 6 inches. Lines per page--11. Extent-- 6,000 Slokas. Appearance--Very old. Character--Nagari. Date of Manuscript --Samvat 1828= 1771 A. D. Place of Deposit--The Public Library, Bharatapur State.
Beginning.-श्री मते रामानुजायनमः ॥ अथ उत्तर कागड निष्यते ॥ पायो राम राज भुव मंडल राछस वध किय रघु पाखंडल ॥ तब सम मुनि तहं पागम कोने ॥ रघुनन्दन प्रति आनन्द दीन ॥१॥ छंद पद्धरी ॥ इक कामिक अरु जब कोत नाम ॥ पुनि गार्ग्य रु गालव तप उदाम ॥ मुनि कएवरु मेधातिथि तनूज ॥ दिस पूरब बसत जुग जगत पूज ॥ २ ॥ भगवान जु दत्तात्रेय नाम ॥ अरुनमुचि प्रभुचि दुहुँ तपाधाम ॥ मुनिवर अगस्त्य भगवान पत्र ॥ अरु सुमुम्ब विमुख चिन्न भय तत्र ॥ ३॥ तं पाए सहित अगस्त्य ईस ॥ दछिन दिस वसत जु विसे वोस ॥ अरु ऋषि रुकवषि मुनि धौम्य पापु ॥ कौमय महारिषि तप अमापृ ॥ ४॥
Bnd.-जब श्री कुंवर प्रताप ने करी ग्रंथ को ांन । रामायन भाषा किया सुकवि कलानिधि जान ॥१०॥ बाल काण्ड अरु युद्ध अरु उत्तर कांड उदार रची भट्ट श्री कृष्ण नै संजुत प्रेम अपार ॥ ११ । सवैया ॥ चारिहु वेद पुरान सबै नित चारन ज्यों जिनके गुन गाइक ॥ जे भव साचन मोचन लोचन कानि सों जग मङ्गलदाइक ॥ एक घनै वहमंडनि नाइक प्राधि पुगे कह मंडन लाइक ॥ श्री ब्रजराज कुमार प्रताप तुम्हें नित जानकी राम सहाइक ॥ १२॥ कवित्त ॥ राजनि मैं सिरदार राजा व्रजभूमि ही कौ ताकी तू कुमार ज्यों सरोज लुकुमार है ॥ तैाहू पर दल के विदारन के वार वार वार सार धारन मैं विक्रमी कुमार है ॥ त्याग तेग भोग भाग पागरे प्रताप सिंघ तूही गुनसागर उजागर उदार है। पते पर सीताराम जुगल प्रमोद धाम प्रम नेम छम छवि पाकर अपार है ॥ १३॥ चौवाला छंद । कुंवर प्रताप सिंघ हित कोनों रामायन भाषा घरक ॥ त सैों श्री रघुवर कवि ऊपर रहे। प्रसाद परम करिक ॥ १४ ॥ उत्तर तहां अभ्युदय