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लगत पारथ जिमि देषत ॥ तेग कटारिन दावि सहज पर दलन विदारत ॥ सेानित *ड भुसुंड रक्त दे ति है सिंगारत || चहुंवान मान गुन ग्यान निधि दान मान निधि इक्क भुव ॥ नवरस विलास आनन्द कर बुद्ध राव अनिरुद्धसुव ॥ १८ ॥ श्री - इति मन्महाराज राजेन्द्र बुद्धसिंह जी देवाज्ञा सुकवि कोविद चूड़ामणि सकल कला निधि श्री कृष्ण भट्ट विरचितायां शृंगार रस माधूर्या पाडसास्वादः ॥ १६ ॥ ग्रन्थ समाप्ते ॥
APPENDIX II.
Subject. — शृंगार
No. 93 (b) Valmiki Rāmāyaṇa Bala Kanḍa by Kavi Krishna or Kalânidhi. Substance -- Country-made paper. Leaves-118. Size -- 15 inches x 6 inches. Lines per_page--11. Extent---3,300 Ślōkas. Appearance--old. Character-Nāgari. Date of Manuscript--Samvat 1839 = 1782 A. D. Place of Deposit -- The Public Library, Bharatapur State.
Beginning.—श्रीमते रामानुजाय नमः ॥ छप्पै ॥ ॐ जय जय रघुकुल तिनक साधु जन मन सुष साजन ॥ कोसन्न भूपति सुता हृदयनन्दन रस भाजन | राम रमा रमनोय समर दसमुष असुमोचन ॥ दसरथ नृप तप पुंज पुण्डरोकायत लोचन | कवि वालमीकि वरनत विमल सुर धुनि सम शोभित सुजस ॥ जय जगत ईस जगदीस जय जय जय निज जन प्रेम वस ॥ २ ॥ दोहा ॥ नमो नमो कवि कल्पतरु श्रीजुत तापस रूप । सर्व ज्ञान अधिवास कवि वालमीकि मुनि भूप ॥ ३ ॥ छंद दुम्मिना || फुल्लिय प्रानन्द ओघ उर कानन रितु वसन्त आगमन कोने ॥ तब चढ़ि चढ़ कवित कलपतरु साषा बहु उछाह संभ्रम लोनं ॥ कन कूजित राम नाम मधुरें सुर सकन जगत मंगल दोनें ॥ कवि वंदहु वालमीकि मुनि काकिल कोमन कंठ रंग भीने ॥ ४ ॥ कविवर वनचारि चक्र चूडामणि वालमोकि मुन सिंह वो ॥ कविता वन पुंज कुंज गति निर्भय विहरत रघुकुल किर्त्ति थनी || अभिराम राम गुनग्राम कथामय नाद करत अति भांति भली ॥ सुनि नाहि परोंहि पाप भज को न रहा तु न चारिहु फल न फनी || विमल पानिधि वेद निधि वानी बरदानि || पूछत से नारदहि बालमोकि मृनि ग्रांनि ॥ ६ ॥
End || दोहा ॥ धरत सकल गुन वृद्ध का सब हो राजकुमार ॥ दार परम अनुराग लहि बहुरि बढ़े गुनभार ॥ ३१ ॥ राजकुमाग्नि के हियें बम्त सदा भरतार || बात अनकही तू कहत ज्यों निज हिय को सार ॥ ३२ ॥ तासु विसेष करि मैथिली बसत जनकजा जीय ॥ रूप देवता सम प्रगट सिया रूपिनी स्त्रीय ॥ ३३ ॥ छन्द काव्य ॥ लसत राम राजर्षि प्रवर तनु कोटि काम छवि ॥ ताही के सम सिया जनक नृप सुता रही फवि ॥ धरत परस्पर दुहं जात अभिराम रूपवर || ज्यों नभ