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APPENDIX II.
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कवीरदास कृत कया पांजी सम्पूर्णम् ॥ संवत १९०४ मोतो ज्येष्ठ वदी ३ वार सोमवार लिषितं रामचरन अात्म पठनार्थ ॥ श्रीराम ॥ श्रीराम ॥ श्रोगम । श्रीराम ॥ सतनाम सत गुरु साहब को दया सकल संतन की दया सा लिषिते तिल परमान दोहा पोया भवन के माहिं जाये जाई जस जम कही रहो पुरस पद ध्याये नई पाद अपने गई दोहा पुरस पदम सम साय तुलसो सुरति नषि चली ज्यों सनिता जानधार लार मुरति मब्दै मिलि दाहा हम पीय पोया हम एक लष विवेक सन्तन कही भई अगम रस भेष देषा द्रिग पिय येक हाये दाहा हमाग सकल पसार वार पार हमहो कहीं सन्त चरन को लार आदि अन्त तुत्नमी भई
छिन छिन मन को तहां लगावै येक पलक छूटन नहिं पावै स्रति ठहरानो रहै अकामा तिन षिरकी में निस दिन वासा गगन द्वार दोसै एक ताग अनहद नाद मुनै झनकारा अनहद सुनै गुनै नहि भाई सुरति ठीक ठहर जव जाई भुवै * * * * * . . . . . (अपूर्ण)
Subject.-योग No. 92 (c) Vivóka Sāgara by kabira Dāsa. SubstanceCountry-made paper. Leaves-12. Size -10 inches x 5 inches. Lines per page-12. Extent--325 Slokas. Incomplete. Appearance---Very old. Character- Nayari. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhyā.
Beginning.-लोषते ग्रन्थ विवेक सागर कथ कवोर महे क (साहब) वकता ॥ साती पुरुष करै धार नाम ॥ पावो प्रेम वुधी वीस्राम ॥ दंहु सुमतो मै मुमीरा ताही ॥ परम पुरुष गति कोई जनता नाही ॥ कहै कवीरा सुनहु भ्रमदासा ॥ भवासगर ते होहु उदासा ॥ समै ॥ दीव्यो ज्ञान वड़ ज्ञान है मुष संतोष समाना ॥ कैहै कवीर वीवेक बल पवै पाद बीवाना ॥ चौपाई ॥ दीव्या ज्ञान बड़ ज्ञान ते आव । सुष वहुतै संतोष सामाव ॥ सत्वी वुतते अवठा साई ॥ ज्ञान समान गुरु नहिं कोई ॥ नही कछु अहै वीचार ते साग | वीन वीवेर (क) बहे संसारा ॥ होहुं वीर्वनाम लव लावै ॥ ज्ञान वीचार परम पाद पावै ॥ सा सहस्र मुष जो जस गावै ॥ वरनत वेद अंत नही पावै ॥ महा पुरुष जो करही वीचारा ॥ विन वीवेक लहै को पारा ॥ ध्रमदास कहै सुनहु गोसाई॥ ॥ वार पार को मैं नही जानौ ॥ तुमरो दया सवै पाहीचानौ ॥ तुमरी दया हाहुनीहोस्तारा॥