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APPENDIX II.
No. 92 (6) Kāyā Pañji by Kabīra Dāsa. SubstanceCountry-made paper. Leaves-1. Size-8 inches x 4 inches. Lines per page-11. Extent-88 Slokas. AppearanceOld. Character-Nagari. Date of Manuscript-Samvat 1904 = A. D. 1847. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्री गणपतये नमः ॥ सत नाम कवोर साहव को दया धनि धर्मदास की दया सकल संतन की दया लिषते काया पांजो धर्मदास जो विनती कोन्ह काया पाजी पूछ लोन्ह काया पाजो कहो विचारा कह हाये सुति करौं पैठारा काया पाजो भाषहु लंग्वा मैं अपने घट करा विवेका करि विवेक तह उति लगावों औ पाजी निज द्वारा पावां तहां सब्द मैं करौं पैठारा जो पाजी पावे निज द्वारा सुति लगाय रहैमैं तहवां सार सब्द मूल है जंहवा विना घाट जाऊं कहं धाई विना जाने कहं रहैसमाई विना जाने कह जानों घाटा कैसे जानों सब्द की वाटा विन जाने सब गये नसाई जीन्ह न जीव नोह द्वारा पाई पावै द्वार सब्द का ठीका और सकल सब लागै फीका मूल मब्द जहं हाय उचारा सा पावा कौने चणी द्वारा भाषो द्वार सुमेर वषाना कहा होय सुमेर सा जानौ कहवां से अकास का लेषा सा माहि ग्यानी कहो विवेका माषी धर्मदास बीनती कर कहा भेद समुझाये तहां मैं मुरति लगाय के सब्द में रहा समाये चौपाई धर्मदास मैं द्वार चीन्हावों मुति सब्द का भेद वतावों चन्द्र लगन का करों विचारा ताह हो ति करी पैठारा दुई मुर पानि करो येक घाटा चन्द्र द्वार होये पावो वाटा कौने घाट चन्द निरमाई कौन घाट सुर समुझाई दहिने घाट सूर्य को बासा बायें चन्द्र करै परगासा ये दुई सुरजा साधै भाई चन्द घाट होय निकसै जाई दहिने सुर हाय सुति चढ़ावै तब निज डारो सव को पावै पावै डोर सन्द की भाई पागम पंथ चढि वैठे जाई अगम पंथ दहिने मुर कहिये मुति संयोग नाल तंह धरिये नाम डोरि दहिने सुर भाई धर्मदास तुम गहा वनाई गहो डेरि काटो जम फांसी पहुंचा पार छटो चौरासी दहिने सुर होय करों पयाना साहंग सुति होये अगवाना साषो कहै कबीर धर्मदास सेा असा साधा घा अगमगम्य तव पाइहो तहं देखो निजवाट ।
End.-अकह कमल में करी पैठारा पीयहु जाय अग्रधारा झमक तहा अन निज मूला उन्ह समीप सरी कोई और न तूला यह नोज जपी अजपा जाप हुँ घों लाक संसा सा वरषे तहां अग्र की धारा सुनि संजोग तहं करी प्रहारा पीयत ताहि रहै समाई यह नीज दीन्हें वस्तु लषाई साषी कहे कवीर धर्मदास से सुति करौ र्चित लाइ यह निज वस्तु भो (पी)यउ उतरौ भव जल पार इति श्री