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APPENDIX II.
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Note. - " सुनिये श्री रघुवंस मनि तुम सन करहु फिराद दुषो वहुत व पीरते कवि गंगा परसाद || प्रारतिहर तिहुं लोक में जाहिर तेरा नाम कवि गंगा परसाद की दूर क दुष राम ॥ चाबे युगल प्रसाद यह निहचै लखि मन माहिं राम चरित दोहावली करी कवित तै ताहि ॥ नाम जपत प्रारति हरन साषी जन प्रह्लाद सेा कि वान अब तज दई कहि गंगा परसाद ॥ जन्म मात्र द्विज वंस में अंस धर्म का नाहिं । द्विज गंगा परसाद की राम नाम इक छाँहि ।” ये उद्धरण भी दोहावली से लिये गये हैं इनमें भी चौबे युगलप्रसाद और गंगाप्रसाद दोनों नाम आये हैं ।
No. 92 (a) Vichara-mala by Kabīra Dāsa. Substance-Country-made paper. Leaves--150. Size--3 inches x 1 inches. Lines per page--~6. Extent -- 900 Ślokas. Appearance—Old. Character—Nāgari. Place of Deposit-Saraswati_Bhandāra, Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-सत नाम ॥ श्री रामायनमः ॥ अथ ग्रंथ विचार मात्र लिष्यते ॥ दोहा || नमो नमा श्री गमजू ॥ सत चित ग्रानन्द रूप । जिहि जाने जग सुप्रवत । नासै भ्रम तम कूप ॥ १ ॥ राम मया सत गुर दया साध संग जब होय । तब प्राणी जा कछ विषय रस भाय ॥ २ ॥ पद वन्दन ग्रानन्द जुत । करि श्री देव मुरारि । विचार मान वरनन करूं । मनी जू उर धारि ॥ ३ ॥ कि मैंन ॥ यहु मैं महु नाहिं मम सब विकल्प भरा बीन । परमात्म पूरण सकल जानि मौनता लोन ॥ ४ ॥ गुर स्तुति ॥ दाहा ॥ तात मात भ्राता सुहृट ईष्टदेव नृप प्रांण ॥ अनाथ सुगुरु सवते अधिक दान ज्ञान विज्ञान ॥ ५ ॥ प्रगट पुहमि गुरु सूर दुति । जन मन नलिन प्रकाश । अनाथ कमेादन विसुष जे कवहूं न होइ हुलास ॥ ६ ॥
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End. -हां सभनी मंह होना हों सभ मोहि वोलग वीलग बीलगाई हा वादन मोरे एक पिछवरा लोग वाले पकताई हो एक निरंतर अन्तर नाही जवें घट जनससि झांई हा ॥ एक समान कोई समुझत नाहीं जाते जरा मरन भर्म जाई हो रैनि दिवस में तहवा नाही नारि पुर्ष समताई हो || ना मैं बालक बूढ़ा नाहीं नही मारे चेलिकाई हो || त्रिविधि रहीं सभनि मंह वरतीं नामु मेार रामु राई हो ॥ पठरांना जाऊं अवने नहि प्रावै सहज रहीं दुनियाई हा ॥ जोलहा तान बान नहिं जाने फारि विने दस ठांई हो ॥ गुरु परताप जिन्हि जस भाषैौ जन बिरले सिधि पाई हो | अनंत कोटि मन होरा बेधेो फोरिकी मोल न पाई हो ॥ सुर नर मुनि जाके पोज परे हैं कीछु कोछु कवीर न पाई हो ॥ १२ ॥ सपुरन ११८० इति श्री वि०........
Subject. - ज्ञानोपदेश ।