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APPENDIX II.
पृ. ६०-६५-श्री रामचन्द्र जी का श्री जनकनन्दनी के महल में जाकर
सखियों सहित अशोक वन को विहार के लिये जाना। पृ० ६५-७०--अशोक वन में सखियों का गस रचना; गाना, बजाना तथा
नृत्यादि करना। पृ० ७०-७८--श्री सीताराम का रास वर्णन । पृ० ७८-८३-श्री रामचन्द्र जी का सखियों का मादक रस पिला कर मद
माती करना और सानन्द विहार करना। No. 86. Krishna Prema Sigara. by Jayadayala. Substance-Country-made paper. Leaves-100. Size-13 inches x 61 inches. Lines per page-12. Extent-5,025 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of CompositionSamvat 1906=A. D. 1849. Place of Deposit-Pandita Madhava Manohara, Dāū Ji ki Gali, Gökula (Mathurā.)
Beginning.- श्री राधारमणजी सहाय श्री राधागोविन्द जू तुम है। परम कृपाल दास जानि किरपा करी हरौ सकल जंजाल ॥१॥ उमा सहित गननाथ की वार वार सिरु नाय कृष्ण कथा चाहत कह्यो हम पर होहु सहाय २ दोहा वन्दों प्रथमहि गुरु चरन सुन्दर सुष की खान सकल मंगल अघहरन देत विमल विज्ञान ३ तिनके सेवत मुलभ शुभ हात पदारथ चार ज्यों दिनकर के उदय ते मिटत जगत अंधियार ४ सारठा पुनि वन्दों पद रेनु जासौं उज्वल हाय हिय करहु सु मम उर अन सुन्दर मोहन जमु कहाँ ५ दाहा गौर अंग राजत विमल विधु अकलंक अछीन सा मम हिय आकास में किया प्रकास नवीन ६ तासा सूझ्यो जो क सेा में कहा मुनाय सुनिहै सजन संत जन अधिक हृदै हरषाय ७ एक समै रिषि गरग जू गए नीमसारन्य राधा वर रस मै पगे भक्तन मांहि अनन्य चौपाई तिनै देषि मुनिवर सब धाप करि प्रादर मन्दिर में लाए कुशल प्रश्न पूछत हरषाई कोनों पूजा अति सुषदाई अव हम सवै जज्ञ फल पाया जा तुमसे मुनि दरस दिषायो मिटि है सब हमरा संतापा विन परि. श्रम ग्राप मूनि पापा ९
___End.-चौपाई ॥ कातिक मास अधिक मुषदाई तीनि वार जो सुनहि हरषाई सा नर सबै पदारथ पावै सब जोवन मैं धन्य कहावै कोटिन अश्वमेध फल हाई चित दै चाहि सुने जो काई बन्ध्या सुनै जा मन हरषाई ताको पुत्र मिले नुषदाई सुनत रंक सौ राजा हाई रोग देत रोगो सब पाई जे निःकाम सुनै चितु लाई कृष्ण भक्ति तेहि मिलत सुहाई २८ ॥ दोहा ॥ गऊ अलंकृत रत्न वहु भूषन वसन समेत अति हित सैां दे भूसुरन नंद नन्दन के हेत ॥ २९॥ चौपाई ॥ गऊ लोक वृन्दावन गायो गोवर्धन माधुर्य सुहायो मथुरा द्वाराबति सुषदाई विश्व