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APPENDIX II.
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सागर यह महा रतु मास जाम तरंग दंपति केलि सुम्न संपति जहां रसपानि रसिक नरेम जानकि जान राम कृपा कली सिय स्वामिनो अनुगामिनो रस मालिका फूली फनो ७१ इाते श्रा अवधिसागरे रसिक जनानन्द करे जुगन्न केनि रस रत्नाकरे श्री जानकीरसिकशरण कृतं चतुर्दश रत्नं १४ संवत् १९.५ श्रावण मासे शुभे शुक्ल पक्षे तिथा दुतोया भौमवारे लिषितं श्री प्रमोद वन कूटि स्थाने श्री मग्यू तटे राम ॥
Subject.-श्री सीताराम को पाठों पहर की लीनाये पृ० १-६-श्री चारुशीला आदि सम्बियां का कनकभवन में जाकर
श्री सीतागम को जगाला आर श्री सीताराम का दतवन
कंज में सम्वियों के संग कोड़ा करना। पृ० ६-१०-नान कुंज लाना, जल केनि और श्रृंगार कंज का वर्णन । पृ० १०-१४-सभा भवन लीला वर्णन प्रथम प्रहर (याम) की लीला समाप्त । पृ० १६-२०-श्रा रामचन्द्र का अपने अनुजां से मिल कर राज भवन
को जाना। पृ० २०-२७-महाराज दशरथ का राजभवन, न्यायालय और अनुजन
महित श्री रामचन्द्र की शोभा का वर्णन। . पृ० २७-३२-सखियों साहत श्री जनकनन्दनी का श्री रामचन्द्र की बाट
जाहना, सामुग्रां का श्री जानकी का बुलाना तथा सखियों
का परस्पर कोड़ा करना। पृ० ३२-३८-श्री रामचन्द्र का माता के दर्शन करते हुए कनकभवन
में जनकनन्दनो के पास जाना, वहां सखियों समेत कोड़ा करतं हार भानादि से निपट शयन कंज में विश्राम करना।
द्वितीय याम प्रसंग समाप्त । प्र० ३८-४३-शयनागार में श्री सीताराम का प्रेमालाप, शयन कंज से उठ
कर हिंडोर कुंज में झत्ना भलते हुए केलि कंज में केलि करना
पार मुखद कुज में विश्राम करना । तृतीय याम समाप्त । पृ० ४३-५३-श्री रामचन्द्र का कनकभवन से अनुज और सखाओं के पास
जाकर गुरु वशिष्ट तथा पिता दशरथ जी के दर्शन करते हुष प्रायुधागा , ग्थागार, गजशाला, हयशाला आदि का जाना तथा काडा करते हुए प्रमाद बन का जाना और वहीं सखायां के संग बिहार करना । उपरान्त कोड़ा करते हुए
माताओं के पास जाकर ष्य, लू करना। पृ० ५३-६०-श्री सीता जी का कनक भव.. में सखियों के संग श्री राम जो
की प्रतीक्षा करना । मखी, द्विजपत्नी, गुरुपत्नो घादि का चित सम्मान करते हुए विविध लीलाएं करना ।