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APPENDIX II.
Subject. - शिव संहिता तथा वशिष्ट संहिता का भाषान्तर संक्षेप में । पृ० १ - मंगला चरण वन्दना गुरु को, श्री सीताराम तथा अन्यान्य देवताओं की । पृ० २ - १४ - स्वामी स्वामिनी, श्री सोताराम की भक्ति, श्री सीताराम का परस्पर प्रेम, श्री सीताराम की अंग शोभा तथा श्री सीता राम तथा श्री अवध का स्वरूप वर्णन ।
०१४ - २७ - श्री अयोध्या तथा मिथिला स्वरूप वर्णन, अयोध्या की शोभा, अयोध्या के वन उपवन तथा सरयू के घाट आदि को महिमा और ग्रन्थ माहात्म्य वर्णेन ॥
Leaves – 83.
No. 85. Avadhi Sagara by Janaki Rasika Sarana of Ayodhyā. Substance — Country-made paper. Size-10 inches x 5 inches. Lines per page-12. 2,500 Slokas. Not very old. Character—Nagari. Manuscript—Samvat 1925 = 1868 A. D. Place o Deposit Lakshmana Kota, Ayodhya.
Extent— Date of
Beginning.—श्री कनकभवन विहारिणि विहारिणें नमः ॥ श्री मन्नारुत नन्दनाय नमः ॥ दाहा ॥ जानकिवल्लभ गुरूचरण कमन वंदि रस राम । हृदय राषि वरन अवधि सागर रसिक विलास ॥ १ ॥ अवध सिन्धु प्रगटो सिया राम भक्तिरस माल । कनकभवन साहत सदा पहिरि लाडिलो लाल ॥ १ ॥ कवित्त ॥ राजन के राज महराज अवधेशजू के द्वार द्वार दुन्दुभी बजन लग भारही ॥ सा धुनि पुनीत वेद वंदी मागधादि सुनि प्रमुदित जैति धुनि करै ठौर ठौर हो ॥ लाग वेद पढ़न मुनीस जहां तहां धुनि छाई सुषदाई जनु वन घन घोरहो | मन्दिर मैं पिंजड़न सारिका सुकादि सियाराम सियाराम रट लाइ चितचार ही ॥ १ ॥ निज निज कुंजनं विशेष कछु रैनि जानि नित्य क्रिया करि चारुसिला जू पे आई है । सषी हेमा छेमा पद्मगन्धा वरारोहा और लछिमना सुभगा सुलोचना सुहाई है | चन्द्रा चन्द्रकला विमलादि जूथेश्वरी सजि के शृङ्गार सैन कुंज को सिचाई हैं । जैति श्री किशोरी श्री लšती राघवेश नृ को मंगल आनंद धुनि दश दिशा छाई है ॥ २ ॥
End. - राम कृपा सिय की मया अजहूं यह रस मांहि पग रसिक जन देखियत विना कृपा न दिषाहिं ॥ ६७ ॥ यह रस पागे जे रसिक तिनकी संगति पाय अनी रूप लहि जुगल मुष रसमाला दरसाय ॥ ६८ ॥ जिनके उर लिय स्वामिनी पिय सह करत निवास रस रतनन की मालते पहिरहिगे रस रास || ६९ || योग ज्ञान वैराग व्रत जप तप संजम ध्यान । सव का फल सियपिय कृपा गावहि संत पुरान ॥ ७० ॥ छंद ॥ सियराम रूप अपार पूरन प्रर्वाधि