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APPENDIX II.
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पृ० ८७-९९-सिय पिय संबन्ध भाव वर्णन । श्री सीताराम का परस्पर प्रेम
करना, विहार और ग्रानन्द करना तथा अष्ट सखियों की सेवा करना। श्री परशुराम का आगमन विवाहोत्सव के
पश्चात् कहा गया है। No. 84 (८). Siya Rima-Rasa Manjari by Janaki Charana. Substance--Country-made , paper. Leaves--87. Size--41 inches x 44 inches. Lines per page--13. Extent-- 450 Slokas. Appearance--Old. Character--Nagari. Date of Composition--Samvat 1881 = A. D. 1824. Date of Manuscript--Samvat 1895 = A. D. 1838. Place of Deposit--Lakshmana Kota, Ayodhya.
Beginning.-श्री सीतारामचन्द्राय नमः ॥ दोहा ॥ जै सिय स्वामिनि राम प्रिय चग्न सरन इति पाय । विसद जानकी चरन ग्स परा प्रेम दर्साय ॥१॥ परा प्रेम तव चरन मय सदा रहै। परि पूरि । मिलै जानकीचरण कह तव सेवन रस मरि ॥२॥ जैति सरस्वति बन्दि श्री शेष बहुरि गनराय । गुरु शिव हनुमत कृपा तं सीय स्वामि में पाय ॥ ३ ॥ वेद स चारिउ वंदि श्री पुनि पुरान व्याकरन ॥ श्री रामायन संघिता सीय राम रस भरन ॥ ४ ॥ जै षड श्री अश्वर्य में चरन वंदि गुर नाम ॥ चरन जानकी स्वामि श्री राम चरन मुष धाम ॥ ५॥ चरन देव गुरु सोस धरि कामद धन अभिराम ॥ चरन जानकी भावना सालि प्राप्त विश्राम ॥ ६॥ भाव किषि इति पोषिते परा प्रेम परि पूरि ॥ चरन जानकी सविधि फलि सिय पिय सेवन रूरि ॥७॥ __End.-सीयराम रम मंजरी पटल रची सुषदाय । सदा जानकी चरण इति सोयस्वामि रस प्याय ॥ १५२ ॥ श्री मद्रामप्रसाद के पात्र स्वामि मम जान । मति गति जिनकी स्वामि सिय चरन कमल रति मांनि ॥ १५३ ॥ श्री स्वामी इति सर्व पर राम चरन थी नाम ॥ चरण जानकी जानि शिशु चरण कमल विश्राम ॥ १५४॥ गुरु चरनन की गति सदा कृपा कीन लषि दीन । सीय स्वामि पद कमल इति अमित अनुग्रह कीन ॥ १५५ ॥ श्री सरयूतट रचित इति अवधपुरी श्री षास ॥ सीय कुंज श्री वास पुनि मिलव सीयपिय पास ॥ १५६ ॥ संवत सत अष्टादशा एकासी श्रावन मास ॥ शुक्ल जानको तीज श्री सोय स्वामि मति भास ॥ १५७ ॥ भासित मति सियराम पद श्री गुरु कृपा स जानि || चरन जानको मधु पियों पिवति सदा रस ठानि ॥ १५८॥ सोताराम सनैन इति हृदि पुनि सीताराम ॥ मति स जानको चरण के सीय स्वामि अभिराम ॥ १५९ ॥ इति श्री सीयराम रसमंजरी दुतीय पटल रस दाय चरन जानकी भावकी सीय स्वामि मन भाय ॥ संपूर्णम् ॥ शुभमस्तु ॥ संवत् १८९५ माघ शुक्ल ११ ॥