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APPENDIX II.
सुचि मिथलापुर में भयेा सुचि विधि तिलक उदार गुरु उत्सव के समय एह सुचि मंगल का सार ११ लिषे पढे वाचै सुनै समुझे चित्त लगाय सिय रघुवर को नेहरस रहे तासु उर छाय १२ इति श्री अग्रस्वामी वंसावतंस श्री सीतारामानन्य मुकुटमणि कविराज राज श्री बाल ग्रत्नी जू कृत श्री नेह प्रकास परि श्रीमद राघवेन्द्र दास चरणानुजीवी श्री मज्जनकराज किसेारी शरण तत्पादपद्म पांसु परिचारक श्री जनक लाडिली शरण कृत सकन पदार्थ कीर्त्ति प्रर्थनीय रसिक विनेदन नाम सम्पूर्ण शुभमस्तु वैसापे शुक्ल एकादश्यां रविवासरे संवत १९२५ लिषितं श्री अयोध्याजी श्री सरयू तीर तटे श्री रामघाट में |
Subject.—बाल अली जू कृत स्नेह प्रकाश की टीका ।
No. 83 (a). Ashtayāma by Janaka-raja Kisörī śarana. Substance—Country-made paper. Leaves — 15. Size—135 inches × 74 inches. Lines por page -- 15. Extent — 600 Ślokas. Incomplete. Appearance — Old. Character —Nagari. Place of Deposit—Saraswati Bhandara. I akshmana Kota, Ayodhyå. Beginning.—रसिक अली जी का वार्त्तिक अष्टजाम प्रारंभ रसिक कृत || श्री जानकीवल्लभो विजयतंतराम श्री सर्वेश्वरीयै नमः ॥ वन्दे गुरुं गुणनिधिं गुणतः परंच श्री जानकी रघुवरम् हि पुनः कृपालु श्री वायुनन्दनमन्त वन प्रतापं सर्वानतिराम भाजः १ अथ प्रात समयमारम्भ्य सार्द्धक याम निसा पतं श्री रसिक मौलि जानकी रघुनन्दनायार्नाना विलास शृंगार रसानुझावितं कृतं वार्त्तिकेन कथयामि ॥ प्रथमहि पिछली रात्रि घटिका चार रद्दत तव श्री महाराज कैशलेश जू के द्वार नौबत वजन लगत तिनको सुन के श्री कनकभवन के मध्य श्री महाराज किशोरी जू की सम्पूर्ण दासी ग्रह सब जगत भई हैं फिरि अपनी २ कुंज मैं कोऊ सा समय की राग सहित राग रागिनी मधुर स्वर से गान करन सारंगी मृदंग तमूरा जंत्र इत्यादिक बाजे बजाइ के फिरि अपने दं धावन अंग उपटन (फुलेल मर्दन) करि फिरि स्नान करि अंग राग सुगंध अंग लगाइ सेारह शृंगार आभूषण तिनका सजि के अपने परिकर सहित श्री चारुशीला जी के महल प्रवति भई ।
End. — मुवारने नाना प्रकार के विंजन पहसन लागो फिर श्री महाराजाधिराज प्रज्ञा दइ सब जेवन लगे ग्रह दोनो ओर को दासिका रचि रचि गारी गावत हैं सुनिसुनि श्री महाराज अरु सव रानो प्रति मगन होत है या प्रकार श्री महाराजाधिराज श्री महारानी जू पूत पताहुन सहित प्रति सुष पूर्वक ब्यारी करि अपर दिव्य मणिमय मन्दिर तहां बैठत भये फिरि सब कुवरन के अरु सब वधुन का अपूर्व वस्त्र भूषण दे सांतरी सा देत भये अरु अत्यंत वात्सल्य