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________________ APPENDIX II. 198 inches x 54 inches. Lines per page-12. Extent-1,000 Slokas. Appearance-Old. Written in both Prose and Verse. Character-Nāgari. Date of Manuscript-Samvat 1925= 1868 A. D. Place of Deposit-Saraswati Bhandara, Lakshmana Kota, Ayodhya. _Beginning:-श्री जानको सिको विजयतेतराम् ॥ श्लोक ॥ नत्वा श्री जानकी रामा चारुगोला मखों तनः प्राचार्य चाग्रदामाख्यं सम्प्रदाय प्रवर्तकं ॥१॥ तथा श्रीरामचरणाख्यं सर्वलाकैक पावनं । श्रीमद्राज राघवेन्द्र दामाख्यं परमं गुरुम् ॥ २॥ तच्छिष्यं रसिकैना श्रावितं म्थात्मनोः गुरुं । टीका स्नेह प्रकासस्य करोमि कृपया ततः ॥ दोहा ॥ जनक लनी को सहचरी वाल अली विख्यात । वन्दै तेहि पद जुगन मुभ साभित मुठि जनजात ॥ ४॥ उपजे को उपचार ते पुनि मन ढरे सा प्रोति । पोषत ताहि आनंद ते सव विधि लालन रीति ५ प्रणे प्रेम प्रासक्त पुनि लगन लाग अनुराग नेह सहित सव प्रीति के जानव अंग विभाग २ जहां वाचक ऐ प्रोति कै तह पर जाय सुभाय । जैसे अंगी अंग को कहु इक नाम मिलाय ३ __End.-मूल-एह मन नेह प्रकासिका पूरि भूरि हिय पाम करहुँ लडेतो लाल के चरनदास को दास १५१ टो०-एह नेह प्रकासका हमारे मन की भृरि कहे विपुल पास अभिलाष पुन के लाडली लाल के चरण के दास को दास ए पक्ष्मे श्लेष्य है एक ता श्री जनक नन्दनि श्री रघुनन्दन के दाम के दास रसिक अनन्य भक्त अरु एक श्री वाल स्वामी वान अनोजो महगज तिनको श्री गुरु तिनका नाम चरणदास जो एसे दाउ में संवन्ध है १५१ दाहा दोष रहित अरु वृहद सेा कहियेत ब्रह्मानन्द स्वर्गादिक मुष जोन जहा ताते परमानंद र यो सिय रघुवर लाल को परस प(र)स मुठि नेह पाश्रय तेहि आनंद को श्रुति प्रति पादित पह २ सा एह नेह प्रकासिका जिन एह कियो प्रकास सषी रूप सा सारदा तिन सिय निकट निवास ३ प्रगट भये इह लोक में वान अली उर आप ताके सुनके रमिक जन ब्रह्मानंद समाय ४ ग्रंथ छंद में ग्रंथि में गुप्त अर्थ ग्रंथ सार जनकलाडिनी सरण से पानी तिलक सुधार ५ गत अभिमान सुसंत पै विगत असूया वित्त ते मुनि हैं आनंद जुन तिन ही को एह वित्त ६ अलि या नेह प्रकासिका भाव बचन सुठि अंग अलंकार भूषन ललित अंजन हाथ अभंग ७ द्वादस हूं भूषन मजे किये अपार सिंगार तिलक विना सामे नहीं एह निज हिये विचार ८ रचो तिलक तेहि हेत एह कविता बनिता भाल राममक्ति बुधवंत जे निरषि सा होय निहाल ९ श्रुति नभ अंक मयंक गत संब(त) अरु सुचि मास सुचि ? सुचि महिसुत दिन षास १० [पह मन नेह प्रकासिका पूरि भूरि हिय पास करहु लडेतो लाल के चरणदास का दास]
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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