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APPENDIX II.
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Beginning.-श्री गणेशायनमः॥ अथ जगन्नाथ भट गोकुलस्थ कृत कवित्त लिष्यते ॥ दोहा ॥ देत कृपाइ खपाइ दुखदाइ जिहि वल पाइ ॥ विघन अपाइ दुपाइ वर वन्दो गनपति पाइ ॥१॥ सकल विसारद चन्द्रिका सारद दुति सो काइ ॥ वुधि वल सारद सो सदां सुमिरों सारद पाइ ॥२॥ कवित्त ॥ कलुष विहंसनि हे हंस चढ़ि राजति परम हंस हंस जाके ध्यावत चरण हे ॥ चारयो मुक्तनि दंत वानो मूकतन मुकतन की सुमाल होये तिमिरहरन हे ॥ हीर इन्दु कुन्दन की छवि करे कुन्द ब्रह्म भव यो मुकुन्द सेवे निभृत करन हे ॥ सकल विसारद ज न वुधि सार x x ? सारद संरन हे ॥१॥ दाहा ॥ गन पशु दिन तिय गोप पति समरथ कृपा निधान ॥ विघन हरो अखु वृषभ यह मृगपति खगपति जान ॥१॥ कवित्त ॥ गन पमु दिन तोय गापति पति पगारग्गज पंच ओ अरुन इंदु इन्दीवर मुषहे ॥ पाखु वृष x x जोवाध वेनतेय वाहन हे देति सिद्धि वि x या सुत सीय माछ सुख हे ॥ परसू त्रिशूल अरविन्द असि चक्र धर करन मरन संहरन जाग रुष हे ॥ सिव विध कस्यप हिमाचल ओ नद नन्द जगनाथ होये वसेा हग्न कलुष है ॥ २॥
End.-अथ चैत्र-सीरी वयारि लगे विष सीरो वियोगी दवागिनि को दह कावति ॥ कंसू कुसमन की अवली सु विलोकत हों बुधि को वहकावति । ध्यान धरे कोऊ माहनी मूरति डीठि सा डा ठि हिये डहकार्वात ॥ वा वज चन्द विना चित रंगे चित चेत की चांदनि री चहकार्वात ॥ ३८॥ कुंडलिया ॥ चैत्र महीना लखि वढ्यो विहिन हियरा दाह । विकल भई विलकति वकति प्रज्यो न आयो नाह अज्यान आया नाह चाह दिन ही दिन वाढ़ति फूले केसू निरषि निरपि छतियां अति डाढ़ति लागत नीर समोर धीर सुधि बुधि रहीना विरहिनि भई विहाल सुपायो चैत्र महोना ॥ ३९ ॥ इति श्री कवि कुल भूषण गोकुल्लालंकार माहात्रेय नवल कविवर राजात्मज राम कवि तनय जगन्नाथ कवि घिपचिताया ति द्वादस महीना विरहनी विरह वरननानाम त्रयोदसा मयूष ॥ १३ ॥ श्री राधा कृष्ण ॥
Subject.-नायिका भेदादिः
१ बन्दना भूमिका प्रादि ।
२ रम लक्षण । ३-७ नायका वर्णन-स्वकीया मुग्धा वर्णन ७-११ स्वकीया मध्यमा वर्णन ११-१४ प्रौढ़ा वर्णन १४-२१ परकीया गुप्तादिक कलावती वर्णन
१ मयूख
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