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________________ 190 APPENDIX II. 23. GE .... , पृ० २१-२४ वार वधू वर्णन ५ मयूख २४-३१ दिव्यादिव्य निरूपण ३१-३९ आचरण जाति अष्ट नायका वर्णन ३९-४४ वर्ण चारि छत्तीस योनि वर्णन .... ४४-५० देश जाति वर्णन ५०-६२ अंग वर्णन मिख नख आदि आदि .... ६२-६६ वसन बर्णन .... ६६-७१ लालसा नहुना लज्जा हानि विषय निवृत्ति वर्णन १२ , ७१-८० द्वादश मास विरहिनो वर्णन .... .... १३ , No. 80 (a). Braja Parikramā by Jagatananda. SubstanceCountry-made paper. Leaves-9. Size-5" x 31". Lines per page-14. Extent -126 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Place of deposit -Pandita Natthi Bhatta Dasa bissa, Goverdhana, Mathura... Beginning.-श्रीगणेशाय नमः ॥ श्री गोवरधन के ईश के भजो चरण सुष कंद ॥ ब्रज में जितनी बसा है सा कयेते हैं जगनन्द ॥१॥ ब्रजि चौरासी कास में इलो वस्तु प्रकास ॥ ताको वर्णन करत है जगत नंद कर पास ॥ २ ॥ अजि मैं वार वन हैं ॥ मधूवन देषो ताल वन और कमेाद वन चंद । वां १ ला नामा षिद् वन वृन्दावन जगनन्द ॥३॥ भद्र भांडीर जुवेल वन लोह महावन ऐन । येहे वारह वन वजि केहत है जगनंद कहवैन ॥ ४॥ अथ ब्रज में चाबोस उपवन ॥ अरज संतन कुंड है श्री गोवर्द्धन हेत । वर सारो परमदरा नंदगाम संकेत ॥५॥ मान सरोवर सेष साई पेलन वन ज अहोर। श्री गोक (ल) गोवद्धन प्रांसाली चित चार ॥२॥ वद्री आदि विसालगढ़ और पिसावो गाम । अंजनोषक अरु करहला कोकिन वन को ठाम ॥ ७॥ दधि वन रावल वछ वन और कोठि वन लेत। उपवन ये चावोस हैं जगत नंद कहि देत ॥ ८॥ ___End.-शेष सेन श्रीकृष्ण जी देषि षीर सागर मांहि श्री ठकुरानी जो जावक सदा कदंव की छांह ॥ ८३॥ अजनोपर में प्रोय पिया श्री गिरिधारी लाल जे श्री राधा रमण जी राधा माधो पाल ॥ ८४॥ यह यह चातर हरि रूप है व्रज चौरासी कोस नाम लेत जग नंद ज्ये कटे कली के दोष ॥ ८५॥ मा वुध मुध पाये जिते तने कहे समुझाइ । जहां तहां ते ठठक हे जगत नन्द वनाय ॥८६॥ इति श्री बज प्रक्रमा जगत नन्द कृत समाप्ताः॥ ८७॥ लेखक लाला हरलाल वासी स्यासाका ॥ श्री॥ Subject.-व्रज के वन उपवन कुण्डादि का वर्णन ।
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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