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APPENDIX II.
न भुलै हैं। माधो केसु भट्टी मिरिजट्ट जिह कहे तहां पानि करि कालो मौ कृपाली भाल षुले हैं । अपूर्ण ॥ ___Subject.-माधव यश वर्णन ।
78(d). Saraswati-prasāda by Jagannatha or Jagdisha Substance-Country-made paper. Leavos-15. Sizo-8" x 4". Lines per page-24. Extent-450 Slokas. Appearance-old. Character-Nāgari. Place of deposit-Bhatta Magana ji Upadhyāya, Tulasi Chautarā, Mathurā.
Beginning.-श्री महागणपतये नमः ॥ अविघ्नमस्तु ॥ सकल कला निधि कृष्ण के चरण कमल चित लाइ॥ नवरस कहि जगदीश कन्छ बज लीला दरसाइ ॥१॥ अथ रस लछनं ॥ दुपय अलंकार कलानिधि को। जह विभाव अनुभाव पार संचारिन प्रगट कियो हिय प्रोक ॥ थाई भावै रस पहिचानै भाषत हैं कवि सहृदय लोक ॥ २॥ थिर जो चित्त को वृत्ति है सा थाई पहिचानि । ताही को रस होत है पान करस सो पानि ॥ ३॥ अथ नवरस नाम ॥ कहिं सिंगार हास अरु करुनहि रौद्ररू वोर भयानक जानै ॥ वीभकरु अद्भुत ये नवहु रस सुष रूप काय मैं पानी ॥ ४॥ थाई नाम ॥ कहि रति हास साक ग्रह क्रोधहि और उछाह वहुरि भय जानौ ॥ हाइ जुगुप्सा अरु विष्मय ये थाई भाव रसन के मानौ ॥ ५॥
___End.-चौपाई अलंकार कलानिधि की ॥ अमुभ रूप निवेदि जू पहले कह्यो सुथाइ भाव जताया ॥ ताते थाई जंह निवेदिम इन तै नवम सांत रस गायो ॥ २१८ ॥ यथा ॥ राचि रह्यौ जामें सा जगत सव सपना है अपने मनहि ऐसे पति समुझाये ॥ काम काह लाभ माह मद अरु माछरता देषि ताहू मैं अमित अकलाइये ॥ कंद भषि गहिये पै लषिये न काहू मुष अपना हू मुप काहू पैन दर. साइये ॥ पाई कै कहूं जो निरजन और गहन गिरि तामें थिर हैकै गिरिधारी गुन गाइये ॥ २१९ ॥ श्री इति श्री श्री कृष्ण भट्टदेव कृषि सुत जगनाथ कृत सरस्वती प्रसाद संपूर्ण ॥
Subject.-वज लीला के पदों के साथ नव रस नायक नायिका भेद वर्णन ।
No. 79. Rasaprakasa by Jagannatha Bhatta. SubstanceCountry-made paper. Leaves-80. Size-124 x 10y". Lines per page-21. Extent-4200 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of deposit-Kavi Navanita ... Chaube, Mathura.