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APPENDIX II.
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Beginning from page 4.
सांप ॥ पिय पाये परदंश से लाये सरस कृसांन ॥ कुलतिय विरहिनि वापरो लषि लषि झड़त प्रान ॥ २६ ॥ मेघ ॥ गोल्न कुंडाला मांडिकै रहत बुराइ पानि ॥ पढ़......" x ".........."अरथ जि""""x .........""विना जन्तु डाढ़ा ........................"रिज में जिनको क""x ................"पहेरो प्ररथहि ग्रा .......... ....."फल ॥ इक गरीब कै....."x......... ......."इकजो धन के प्रावै ....x ......... ........ ४ ....."कमलन को साहै थान....." x ........ सर करि लतु सुजान ॥ २ ." x "x ""सर ॥ षट् पद जाकै कहतहे x ले सुमन को ठोर ॥ कवि पढे। पहेरियां प्ररथ न जानौ भांर ॥ ३७॥ __End.-प्रथी पालिवै कोन है सिंघ अपेघी कौन ॥ नीके करि मैंने कहयो जानि लेहु भल सौन ॥ २०० ॥ पृथ्वी सिंघ ॥ गोरज छाई पलक पर तिलक पौरि वहु विंट। जिति लषि लाग्यो इंद्र हू संकर तज्या अरविंद ॥ २०१॥ गोविंद ॥ करी पहेरोदोर से घरी बुदि की दौर ॥ बिनतो यह जगदीश की गिनती करियो और ॥ २०२॥ गुरु वरि पाचै जेठ सत ठारह से उनतीस ॥ बुद्धि परीक्षा ग्रंथ यह कोना कवि जगदीश ॥ इति बुद्धि परीक्षा ग्रंथः ॥ श्री हयानना जयति ॥
Subject.-पहेलियां । ___78(c). Madho Vijaya-Vinoda by Jagannatha or Jagadisa. Substance-Country-made paper. Leaves-16. Size-43"x 2". Lines per page-16. Extent 200 Slokas. AppearanceOld. Character-Nagari. Place of doposit-Magana ji Upādhyāya, Mathurā.
Beginning.-श्री गणेशाय नमः ॥ अथ माधा विजै विनोद लिष्यते ॥ कवित्त । सुत सुष धारै परै धारै द्वै कुचनिते पीवत हैं पापै बड़ी बुद्धि के विनोद मैं कहि जगदीश गहि रह्यो एकै प्रानन मैं सुड़कत सुंडि पानि पक रहे प्रमोद में ॥ षटमुख वापरे को कछु न वसात तारहि मूषक फिराइ डरपावै वहु गोद मैं । पत्नन के करी खलभल मल भक्तन पे पेलत गनेस से गिरिजा की गोद में ॥२॥ सारठा माधव मानिहि तूनि मुषित राज अविचल करै। जाहिर जय सिंह सून सूवस जयपुर जयपुरिह ॥ छन्द पद्धरो ॥ जयपुर नरिंद अम्बावनोस रणथंभ थान पति धरणि ईस अगनित्त वुद्धि अगानित्त सुदि अगनित्त दान अगनित्त ध्यान अगनित्त तेग वल तेज ओक"...""अगनित्त भोज मानन समथ्थ अगनित्त युद जीतन सुपथ्थ अगनित्त वित्त जेहि भरिय कोस प्रगनित्त फौज वैरिन सरोस ।
___End.-धरन पै वन्धि करी सुंडिन के वेस वास पात पार कांदा सुषपाल बैठि डुले हैं कहि जगदोश मागे दोरन खईश केते हाथी दात धोरे इन माम जे न भुलै हैं भैरों सिरदार भूरि मजरि करत दृरि पछि मय मुत्ती वीर जौहरी