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APPENDIX II.
___No. 78(a). Alaikāra Prakasa by Jagannatha or Jagadisa. Substance-Country-made paper. Leaves-19. Size-8" x 4". Lines per page-21. Extent -400 Slokas. Appearance-Old. Character-Nāgari. Date of Manuscript, Samvat 1823. Place of deposit-Bhatta Sri-Magana ji Upādhyāya, Mathura.
Beginning.- ॥ ८०॥ श्रीगणेशायनमः ॥ श्री हयग्रोव देवाय नमः ॥ अविश्वमस्तु ॥ दोहा ॥ श्री ॥ सरसुति सरवर सकल सुष तिन सरसीरुह पाइ ॥ नाई निजानन विन विघन रचे ग्रन्थ चित चाइ ॥ १॥ अथ उपमालंकार लछनं ॥ उपमेय हि उपमान से की जहां समानु इक साधारण धर्म करि तैह उपमा कवि जानु ॥ २॥ अाननादि उपमेय हैं उपमानरु ससि आदि ॥ धर्म सधारण आदि दुति वाचक उपमइ वादि ॥ ३॥ पूरन उपमा जानि कवि इन चारिनि अवरेषि ॥ इक दुइ तीनन लोप सां लुप्तोपमा हि पेषि ॥ ४॥ पूर्णापमा यथा ॥ जात गलीनि मिलि हरि ग्वालि वियाग विथा चमकाई गई ॥ मत्त मतंगज चालनि मैं पग पाइल को झुमकाइ गई ॥ किंकिनि घार घुरै जगदीश घनो घंघरो छमकाइ गई ॥ नीलनि चालनि ते दुति देह को दामिनि निसि दमकाई गई ॥५॥
__End.--प्रथ व्याघातालंकार लकनं ॥ जासोंजो कछ स (सा) नियै तिहिं हो सौ तिहि भंग ॥ सा व्याघात वषानियै करि करि अमित उमंग ॥ १६४॥पाइ परै बहु हाहा कर विनती करि वैगनती तजि दोनी ॥ प्रालि नई तिनसौ समुझावन सैन नहिं कितही नहि लीनो ॥ रति को तीह करि जग दास पै होइ रही पर राषिन वानी ॥ जो घन स्याम सा रूसिहि नारि अहे। घन स्याम सुही वस कोनी ॥१६५॥ ये संछेपहि सा अरथ अलंकार मैं कोन ॥ घरि वधि लोज्यो सौधि अव अवि धीरा परवोन ॥ १६६ ॥ सकल कलानिधि कृष्ण सुन सरसुति गुरु वुधि भास ॥ कीनो है जगदोश यह अलंकार परकाश ॥ १६७ ॥ श्री || शुभं भूयात || श्री ॥ लिखितं जुगल किसार भट्टस्येदं पुस्तकं स्वपठनार्थ मिति फाल्गुन सुदी १ संवत १८२३ दसकृत जुगल के ॥ श्री कृष्णाय ॥ श्री गोपी जन वल्लभाय ॥ श्री रामाय ममः लिखे श्री सवाई जयपुर मध्ये ॥ श्री श्री श्री ॥
Subject.-अलंकार ।
No. 78(b). Buddhi-Parikshā by Jagannātha or Jagadisa. Substanco-Country-made paper. Leaves-23. Size-52" x 3". Linos per page-15. Extent-300 ślokas. Appoaranco -Old. Character-Nagari. Date of Composition-Samvat 1829. Place of deposit-Bhatta Magana ji Upadhyaya, Mathura --