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APPENDIX II,
186.
ठार पावैताही तैसे तेज फेरि पान रे पुत्र उत्तिम घोरा कहै तिनको पठम्गुनी काइज राषो में जो पहर चलै पानी दीजै बारबार तेजु करै कमलु सूपत है कमल हो मैं तेजु रहतु है ताते तेजु पानी बरनु है ।
Subject.-शालिहोत्र । ___No. 77. Yuddhya-Jotsava by Jagannatha. SubstanceCountry-mado paper. Leavos -21. Size—7" x 43". Lines per page-24. Extont-750 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagiri (Kaithi). Date of CompositionSamvat 1887. Dato of Manuscript-Samvat 1891. Place of Deposit-Tho Library of the Rūjā of Pratāpagallha.
Beginning.-श्रीगणाधपतेनमः ॥ जुध्य जोत्सव ग्रंथ ॥ दाहा ।। उमा संभु पद नाइ मिर जुद्ध विजय विष (नृप १) प्रोति ॥ जगन्नाथ स्वर-सास्त्र मत बरन्या भापा रीति ॥ १॥ रच्यो संभु स्थर ग्रंथ बहु जानि गयो मत मापु॥ अबरम्हाजन मुने सव सत गुरु क्रिया प्रतापु ॥ २॥ कह्यो वुद्ध सारांश मत यह लषि चले महोप। हनै प्रकलो शत्रु वहु जैसे पांखो दीप ॥ ३॥ अधम मिप्य को देहु मति जुध्य विजय मारंश । नासै फल निःफल ( करै १) प्रायु वल को भ्रंस ॥४॥ साधु मिघ्य का प्राति करि देश कल्प तरु हाई ॥ वरना जुद्ध बिधान अव कपा करहु मब काई ॥ ५॥ अव कहउ भट पर तनय भज पग सदचल बनाइ ॥ सा तारा पेक मन कलमत तर लगाइ॥ घङ छक संग युजु तेषण धफ ढभथ झज दुपाहि ॥ नाम ग्रादि की वरन ध्रव यामें मात्रा नाहिं ॥ ७॥
End... तामु तनय रघुनाथ सिंह सुचिवदार रन हर्ष ॥ जगन्नाथ ताको अनुज रच्या ग्रन्थ उत्कर्ष ॥ ३७॥ लखि कठोर मन जुध्य का रच्यो न काव्य समूह ।। कविताइ समुझे मुमति हाइ समन को दृह ॥ एक हज़ार पाठ सै सात असी के वर्ष ॥ समि प्रदोष भाषाढ़ सुदि रच्यो ग्रंथ उत्कर्ष ॥ ३९ ॥ छंद मत्तगयंद ॥ सिध्य सिरोमनि जुध्य विजय सुभ ग्रंथ अनूपम संग्रह कोने । भूपन के हित संगर साभित साधि वलावल कोविद लोने ॥ देखि सुसाइति या मनसा अरि जीति लिए नृप जे परवीने ॥ भूप कुमार प्रजोत लिये लिपि स्यौपरसाद सुकायथ दोने ॥ दोहा । नग नव वसु ससि मार्ग सुदि प्रति पद पर गुरुवार । ग्रन्थ लिष्यो तरउलि विषे जह नृप धीर वदार || सुभमस्तु ॥ राम राम ॥
Subject.-स्वर शास्त्र।
Note.-कवि जगन्नाथ रघुनाथ सिंह के भाई थे। ग्रादि निवास इनका मण्डौली था।