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APPENDIX II.
End.-भावार्थ । संसार विषय भाग ते परम वैराग ताको करण हारो पैसो जो है भगवंत को प्राज्ञा तिसका नाम मोक्ष मार्ग कहिए । तिनको प्रभा. वना निमित्त यह ग्रंथ मैं कीनां ॥ अथवा तिस ही मोक्ष मार्ग का उद्योत कीनां । सिद्धांत माफिक संक्षेपता करि भक्ति पूर्वक पंचास्तिकाय नामा मून सूत्र ग्रंथ कहा ॥ प्रागै इस ग्रंथ के करने हारे श्री कुंदकुंदाचार्यज है इह प्राण की गाथा तिसके पार प्राप्त हुवा । कृत कृत्य अवस्था अपनी मानी। कर्म रहित शुद्ध स्वरूप विषे थिर भाव धारण । जैसी ही हमारे विर्षे भी श्रद्धा उपजी । इसि पंचास्तिकाय समय सार ग्रंथ विषय मोक्ष मार्ग कथन पूर्ण भया॥ व ॥ यह कछुइक अमृत चन्द्र कृत टीके मैं भाषा वालवाध श्री रूप चन्द्र गुरु के प्रसाद थी याके श्री हेमराज ने अपनी बुद्धि माफिक लिखत कीनां । जे वहुश्रुत है ते संवारि कै पढ़ियो ॥ १॥ इति श्री पंचास्तिकाय ग्रंथ सम्पूर्णम् ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ।
Subject.- पंचास्तिका वचनिका की टोका ___No. 76. Sali-hotra by Ichchha Rimm. Substanco-Country-made paper. Leaves-10. Siz0 -9" x 53". Lines per page16. Extent-150 Slokas. Appearance-Very old. Character-Nagari. Place of Deposit-Rima Gopala Vaidyal, Jahāñgirābād, Bulandarahar.
Beginning.-श्रीगणेशायनमः अथ सालहोत्र लिपिते सालहोत्र दियि सति नाम वेटा सूकहत है। बेटा यह सुनि प्रसन्न कोनी ॥ मनुष्य देवतानि मध्य तीनिहुँ लोक के सुख कहत है ताहां शालहोत्र कहत है मुनि पुत्र मुक्ति भुक्ति के दाता श्री विश्नु है तिन के तोनि रूप रत रहै ब्राह्म पट करम रहे अग्नि जज्ञन पकी धारा सुनि छनय गति है ये तीन्या विश्नु की प्रतक्ष मुरति है बेदनु कहि ब्राह्मन प्रथो थावत है बेद दोन ब्राह्मन हाहि तो मेह न वरष जा जज्ञ न हाहि ता देसन को भय होई जो धारा न होहि ता राज तंज भागति न हाहि दंश भूमि कूपोड़ा हाई पाकाश के विवान घेारनि है जो मनुष्य विषण को मुरति करि पूंजत है तिन्है मरन के समय सूर्य के रथ चढ़ाई सूर्य लोक में लजात है मारु या देश में हेतना+करत है और रोग तै पारोग्य राषत है। जा घोरा कुंजूढ़ी यसन देत है तिनही सदा घोरे के पागे दारत जात है त मनुष्य बिष्ठा के कीड़ा होत है शालिग्रामै जूठी दोजै घोड़े जूठे। न दीजै अधिकार घोड़े को है लीन बरी लीला यह तगा हिन्दु न बांधै संग्राम कू यविचाई ? करत व संग्राम कू चढ़ तो बहुतो हथयार फुटै।
End.-जो घरीद्वैचारि में लगाम उतारें तो गदी मरै जो मध्यम लेई तो पजीरन हाईजो गिरै तो तेज़ फेरि पावै नाही जैसे पंछो चेचान के कर पैठहि