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APPENDIX II. महा प्रभू कहे हे ॥ सहस्र परिवत्सरि सा श्री ठाकुर जी को लीला में दया ऊपजी ॥ तब श्री प्राचार्य जी महाप्रभून को प्राज्ञा दीनी जो तुम भूतल पे पधारा ॥ .और दैवी जीवन का उद्धार करा ॥ वे दैवी जीव वाहात काल के भटकत है ॥ सा वे मारग में पेठत हे ॥ परि कहूं ऊंनको स्वास्थ होत नाहीं ॥ सा काहे ते ॥ जो जा वस्तु के वे अधिकारी हे ॥ सा तो कहूं देखियत नाहीं लाते परिभ्रमन कात हे परि कहूं स्वास्थ होत नाहीं॥ मा तिन जीवन के लोये श्री प्राचार्य जी महा प्रभू आप पधारे है ॥ से केसो रोति से पधारे हे ॥ लेा माक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम का धाम है ॥ सा तेजामय हे ॥ सा ताको अाधार अग्नि है ॥ सा अग्नि कुड में ते श्री प्राचार्य जी महाप्रभू प्रगट भये ॥ ____End.-सा वातं श्री प्राचार्य जी महाप्रभून की वार्ता सदैव बांचत मुनत रहनो ॥ जो सव भगवदी मन सहित श्री आचार्य जी महाप्रभून को वार्ता लिखे है। सा तातें श्री प्राचार्य जी महाप्रभून को वार्ता को पार नाहों ।। से गोपाल दाम जी गाए हैं ॥ जैते निगम नेत नेत गाय ।। से ताको काऊ कहां जस वर्नन करेगो ॥ सेा छीत स्वामी गाये हैं ॥ सापद ॥ राग मारंग ॥ गोवल्लभ गावद्धन वल्लभ श्री वल्लभ गुन गनै न जाई ॥१॥ जिनकी चरण कमल रज कंदित संपति होत सदा सुखदाई । छोत स्वामी गिरधरन श्री विठ्ठल नंद नंदन की सब परछाई ।। २ ।। सा तातें श्री प्राचार्य जी महाप्रभून की अनेक वार्ता हैं ।। सा कहां ताई लिखिये ॥ प्रसंग वार्ता द्वादश ॥ १२॥ इति श्री प्राचार्य जी महाप्रभून को निज वार्ता तथा निज वार्ता संपूर्ण ।। यह पुस्तक लोखी श्री गोकुल जो में श्री यमुना जो के तट पे लिखो लिखि या पूगे मल्ल ने सनाढ्य ब्राह्मन ने जो काई बांचे सुनें तिनको जै श्री कृष्ण मितो माह मुदी ५ वसंत पंचमी ।। मंगलवार ॥ संवत् १९२१ ।। ____Subject.-महाप्रभु का जन्म, घर से निकलना, दामादर का संग, राजा कृष्णदेव को राजसभा में श्री गोवर्द्धननाथ का मिलना, वैष्णव और स्मात सम्प्रदायों के शास्त्रार्थ का जीतना, 'आचार्य' पद का प्राप्त करना, दिग्विजय और श्री वल्लभाचार्य को द्वादश निजवार्ता द्वादश अध्यायों में।
No. 74 (d). Varshotasava by Hari Riya. Substance-Country-made paper. Leaves-100. Sizo-12" x 6%". Linos por page-25. Extent-3437 Slokas. Appearance-old. Character-Nagari. Place of Deposit-Archaeological Museum, Mathuri.
Beginning:-श्री कृष्णाय नमः ॥ श्री गोपोजन वल्लभाय नमः ॥ अथ श्री हरिराय जी क्रति वर्शात्सव लिष्यते ॥ राग पासावरो ॥ जन्म सुत को हात हो प्रानंद भयो नंदराई ॥ महा महोछव ग्राजु कीजे वढ्यो मन न रहाई ॥ १ ॥ विप्र वैदिक वालि के प्रस्थान वेठे पाई ॥ करि भाव निर्मल पहरि भूषन स्वस्ति वचन