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APPENDIX II.
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Leaves-36. Size-63" x 6". Lines per page-14. Extent360 Slokas. Appearance-Very old. Character-Nagari. Place of Deposit--Śrī Dovaki Nandanãohārya Pustakālaya Kāma-vana, Bharatapura.
Beginning-श्रागापोजन वल्लभाय नमः ॥ घर ॥ एक समय श्री गोमाई जी श्री यमुना जी श्री ठकुरानी जी x x संध्या बंदन करबे x x x x x (प्रथम पृष्ट नष्ट हो हो गया है) श्रीगोपीजन बल्लभाय नमः॥ छंद लालक ॥ श्री कृष्णायनमः॥ श्री प्राचार्य जी महाप्रभू जी को x x x x मात्मक स्वरूप विचार श्री हरिराम जी कृत लिख्यते ॥१॥ सा काट कंदपं लावेंन ॥ साक्षातकार रसात्मक ॥ प्रानंद मात्र ॥ कर पाद मुखोदरा ॥ ऐसे जे श्री पुर ॥ पुरुषोत्तम ॥ सा प्रथम एक रस रूप ग्राप ही हते ॥ और श्री स्वामिनो जी के संग ॥ अंतर लीला करते ॥ अनुभव करते ॥ पर बाहिर प्रगट न हाते ॥ से ए मब ममे वह ॥ श्री पुरण पुरुषोत्तम पुरुष ने ॥ अपें जो श्री मुखदर्पण में देखा ।। सा कोईक अद्भुत रूप गर्वित नायका को सेा ॥ अतत पनीरवचनोय लावेंन ॥
___End.-श्रो गुसांई जो ॥ या भांति सा यह चाखों ही स्वरूप मेरे हृदय में बसा सदैव ।। यह मेरो बिनती है ॥ यह श्री गुसांई जी के ।। स्वरूप का चिंतन ।। मेरे हृदय में बसा सदेव ॥ यह में बार वार वीनती करत हूं । प्रार्थना करतहुं । एसे श्री गुसांई जो ॥ जो नाव वसहत रस रूप ॥ यह अप्ट प्रहर स्वरूप ॥ प्रानंद सहत वार वार ॥ पल पल्न । क्षण क्षण ।। मेरे हृदय में निरंतर बसा ॥ यह बीनतो हे ॥ इति श्री गुसांई जी के त्रि रूप को नाम संपूर्ण ॥
Subject.-वल्लभ सम्प्रदाय के प्राचार्यों के प्रात्मस्वरूप का वर्णन । __No. 74 (c). Sri Acharya ji Mahapra.bhā na ki ID vidasa nija Vārtā by Hari Rāya. Substance-Country-mado paper. Leaves-214. Size-12" x 68". Lines per page-27. Extent 9030 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Date of manuscript-Samvat 1921. Place of deposit - Archaeological Museum, Mathuri. ___Beginuing.-श्री कृष्णायनमः ॥ श्री गोपीजन वल्लभायनमः ।। अथ श्री प्राचार्य जो महाप्रभून की द्वादश निज वार्ता लिख्यते ॥ साश्लोक ॥ चिंता संतान हतारो यत्पादांबुज रेणु च स्वोयानांता निजाचार्यान्प्रणमामि मुहुर्मुहु ॥ १।। यदुन ग्रहती जंतु सर्व दुखातगोभवेत् ॥ तमहं सर्वदा बंदे श्री मबल्लभनंदनं ॥२॥ श्री पाचार्य जी महा प्रभू प्रगट भये ॥ देवो जीवन के उद्धारार्थ ॥ ला दैवी जीवन को भगवान ते विछुरे वाहोत दिन भए । सा गद्य के श्लोक में श्री प्राचार्य जो