SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 180 मुख छके रूप हरलाल देषि लोला रसाल रुष चर अचर जीव जन थल मगन जढ चेत चेत जड पन लयौ प्रदभुत रसाल जब कृष्ण को वेगगीत वाजन भयो ॥ २१ ॥ दोहा ॥ गपिन को कंद ते कृष्ण प्रेम है चूर कात्याइन पूजन फलैा तत प्रसाद भरिपूर २२ इति श्री भागवते महापुराणे दशम स्कंधे वृज विनोद लीलायां श्लोकार्थ संबंधो भाषायां इकोसाध्यायः २१ श्री श्री श्री श्री ॥ Subject. - रास पंचाध्यायी भागवत दशम स्कंध की कथा । APPENDIX II. No. 74 (a). Śrī Yamunā ji kē nāma by Hari Rāya. Subs tance—Country-made paper. Leaves – 13. Size - 642 " x 527. Lines per page 8. Extent – 156 Ślokas. Appearance-Old. Character—Nāgari. Place of Deposit - Śri Dēvaki_Nandanacharya Pustakalaya, Kama-vana, Bharatapura. Beginning.—श्रो कृष्णायनमः श्री गोपीजन वल्लभायनमः ॥ अथ श्री यमुना जी के नाम लिख्यते ॥ १ ॥ पांछे जेष्ठ सुदी ॥ १० ॥ मी को प्रयाग में श्री यमुना जी को संगम भयेा ॥ सेा प्रथम श्री वामन जो के चरन संबंध तं इतनाई महात्म्य हनी ॥ साराजन दसेना देव ब्रह्म हत्या पाप हारनी ॥ अव श्री यमुना जी के संगम || रिपु ॥ श्री कृष्ण की प्रिया भावुका भई ॥ अष्ट विधि ईश्वर्य श्री यमुना जी श्री गंगा जी का दांन करत भई ॥ ताते यह उत्सव मानिये ॥ ता गंगा जी की नांई भगवदीयत्व को दांन श्री यमुना जी प्रसंन्य होय के देई ॥ तातें श्री गंगा जी के कोतन गाइयें ॥ सेो यमुनायनमः ॥ जा जाके नाम ते ॥ प्रभु को नाम कृष्ण ॥ श्री यमुना तातें कृष्णा कहें ॥ २ ॥ श्री यमुना जी की शृंगार अवश्य करना ॥ ऐसी श्री यमुना जी का नमस्कार करत हैं | जम जाना निवर्त होजाय ॥ कृष्णायनमः ॥ जी का नाम कृष्णा || यह प्रिया पटरानी है ॥ End.-नई रस मई सारा ब्रह्मविद्या सुधावहा । नारायनी ईश्वरी ब्राह्मो धर्म मूत्तिं कृपावतो ॥ पावनो पून्य तायानां समसागर संगता ॥ तापिनी यमुनांयामि स्वर्ग सोपानि पद्धति ॥ २ ॥ कालिंदी केलि सलिला सर्वतीर्थ मई नदी नीलोत्पलद स्यामा महापातक भेषजा ॥ ३ ॥ कुमारो विष्णुदयता भवतारित गति ॥ सरितः सरणागतिः ॥ संत्रानानि पुना सगुना पुना ॥ ४ ॥ यभि भामभिः || प्राप्त ये यमुना संस्परेन्नरः ॥ दुरस्थोपि सपापेभ्येा मभ्येविपि मुच्यतं ॥ ५ ॥ इत्यादिक भाव ते जेष्ट के दसहरा की उत्सव श्री यमुना जी में अत्यंत प्रीति पूर्वक भाव कर्त्तव्य है ॥ इति श्री हरिराय जो कृत श्री यमुना जी के नाम संपूरणम् ॥ Subject. - श्री यमुना जी और श्री यमुना के घाटों की वन्दना और महिमा वर्णन | No. 74 (b). Śri Āchāryā ji mahā-prabhū kō swarūpa. Tikā kāra Hari Rāya. Substance - Country-made paper.
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy