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APPENDIX II.
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लुप्तोपमा लक्षन || वाचक धर्मरु वर्ननो चाथे। उपमा जोय ॥ इक विन द्वे विन तीन विन लुप्तो उपमा सेाय ॥ ८ ॥ उदाहरन || सरद विसद ससि से लसत प्रानन अमल अनूप ॥ ललित किशोरी कमल पद भववोहित सुष रूप ॥ ९ ॥ इति साब्दी उपमा ॥
End. - अथ कोमलावृत लक्षन || विना मधुरता बोज विन कहि कामला बिष्यात ।। साच अनेकन ग्रंथ के मत से बरने जान ।। ३९६ ॥ यथा ॥ सवैया || भाग जगै पाहमी के छवै पद कोमल कंज लगै किम ताते ।। रूप की रासि अनूप रची विधि आप सची को नजाति है जातें | है रति मैं रति मी हरिदेव जू जानत काम कलान की घाते || जानि बड़ी है बड़े कुल की अरु नैन बड़े हैं बड़ी बड़ी बातें ।। ३९७ ।। वेद इंद नव निधि विसद वृह्म अंक मधुमास ॥ हरिदेव सु कोना विसद भूषन भक्त विलास ।। ३१८ ।। इति भूषन भक्ति विलास ग्रंथ संपूर्ण ॥ शुभं ॥ श्री राम जी सहाय ॥
Subject. - अलंकार ।
No. 73. Braja-Vinoda Lila Pañchādhyāyī by Hara Lala Substance-Country-made paper. Loaves - 6. Size - 10 " x 5”. Lines per page-12. Extent-150 Ślōkas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-Babū Purushottama Dâsa, Viśrāma - Ghāta, Mathurâ.
Beginning. - श्री गणेशायनमः श्रीकृष्णायनमः ॥ पंचाध्याई आरंभ ॥ दाहा ॥ यह संका की न (ना) करौ कहि अकूर प्रसंग । बह्म हृदेश (म) पह आदि है तजा तर्कना अंग १ कवित । भागवत सिंधु घन इमृत कौ वरसन भक्ततर सोंचे संत मुक्ताफल जामु है माना सुक सारदा प्रकासी महिमंडल मै करे अंधकार पूरि चन्द्रिका साहातु है थ्रोट गोबरधन जू वज मै विराजै आप चासौ वेद मूरति की एके अंग जासु है सीतल सुगंध सुझ प्रगट पराग फैल्यो वृंदावन सर मे सरोज की प्रकासु है १ सवैया ॥ कै शुक कै सनकादिक नारद सिद्धि मृनी गुन त्रे तजि फेठै। ज्ञान सरोवर मान सरोवर ध्यान सरोवर हंस लपेठै नाम अधार सुधार हिये पद कृष्ण उदार भजै रज पैठे श्री भट श्री व्रजपति सेाउ वर मंजु निकुंजनि मे कि बैठे ॥ २ ॥ दोहा ॥ श्री गोवर्द्धन भट जू कृष्ण प्रेम रस ताल मगन भयौ
ताप माथुर कुन हरलाल ३ दईवी माया मा पति की लाग्यो व्रज वोथुन चरा मन भावे पर मोर को गोपन समान वलिभद्र को समीप आजु राजै वजराज बाजै घन घोर कौ २
End. - छप्पय ॥ गऊ मृगो दिन नारि षगो सरिता मुमेघ रस परवत भिडून वृछ सरोवर सरित भई बस दरस नैन लहि चैन गोथिका वरन सरद
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