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APPENDIX II.
रचि राषी विपरीत रति मदन विनोद भंग सरस्यो सुरंग प्रैल ॥ छैन कौन छाइत है छिन हू बोली छक छाड़त क्वीलो कौन छिनहू छबोली छैन ॥ २०० ॥ दोहा यह प्रवंध पूरन किया मै निज मति अनुसार ॥ भून चूक कहुं होय तो लीज्यो सुकवि सुधार ॥ २०१ ॥ दाहा मोहि अापना जान जन छिमियो यह अघ्रभार ॥ बड़े लघुन पै हित करें ज्यों गिर सिर त्रिन धार ॥ २०२॥ दोहा ॥ धरौ नैन निधि सिद्ध ससि समत सुषद उदार ॥ माघ शुक्ल तिथि पंचमी रविनंदन सुभ बार ॥ २०३ ॥ इति श्री राधिका रमण पदाविद मकरंद पानानंदित अनिदं श्री रतोराम पात्मज कवि हरिदेव विरचितायां छंद पयोनिधे नाम पद्याधिकाने अष्टयोस्तरंग ॥ ८॥ समाप्ते शुभं ॥ मिती श्रावण वदो सप्तमो संवत् १९२३ हस्ताक्षर विहारीलाल के ॥ श्री राधाकृष्ण जू ॥
Subject.-छंद शास्त्र । तरंग १- वृत्त विचार । ,, २-मावायण कथन । ,, ३-गुरु लघु विचार । ,, ४-मात्रा अष्टांग वर्णन । , ५-वरण " " ., ६-गरणागण , , , ७-मात्रा छंद ,, , ,, ८-पद्याधिक ,, ,, No. 72 (b). Bhūyhana Bhakti Vilāsa by Haridēva. Substance --Country-madu papur. Leaves-35. Size-6%" x 5". Lines per page-14. Extent- 490 Slokas. Appearance-old. Characte -Nagari. Dato of composition-- Samvat 1914. Place of doposit-Ramana Lala Hari Chanda Chaudhari, Kosi, Mathura. ___Beginning.-श्री राधारमणा जयति ॥ सुमर प्रथम गुर पद कमल भवरुज समन मुमूल ॥ कवि मनरंजन कवि कहत भूषण भक्त अतूल ॥ १ ॥ यदिप सुजात सुलक्षनी सुंवरन सर सिसु वृत्य ॥ भूषन विन न विराजही कविता वनता भित्त ॥ २॥ अलंकार इक ठार मैं ज्यों अनेक दरसाय ॥ कवि को पास है तहां जे प्रधान तिन मांहि ॥ ३॥ रसह ते अरु विंग ते भिन्न उक्त है साय ॥ शब्दाग्थ भूषित करै अलंकार है साय ॥ ४॥ विविध भांत भूषनन मैं उपमा जानु प्रधान ।। तासां कवि हरिदेव यह प्रथमहि कहत वषान ॥ ५॥ उपमा जाकै दीजिये उपमे ताहि कहंत ॥ करें जांय सादस्य सा उपमा वग्नै संत ॥ ६॥ समता बीच दुहून के रहै सुवाचक जान ॥ दुहूं ओर की लक्षमी प्रगटै धर्म सुमान ।। ७ ।। अथ