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________________ APPENDIX II. 176 है विराट युयुधान ॥ ४॥ धृष्टकेतु ग्रह कासिपति चैकितान वलवंत । कति भोज यह शल्य पुनि पुरुजित शत्रु निकंत ॥ ५॥ जुधामन्यु अति विक्रमी उत्तमौजा रणधोर । द्रोपदि मुत अभिमन्यु पै महारथो वलवीर ॥ ६॥ मा सेना मै जे बड़े ते सव गिनि द्विजराज । नीके जाना तुम तिन्है खर जुद्ध के काज ।। End.- व्यास प्रसादाच्छ त्वा नेतत्गुह्य महं परं..... 'नोतिर्ममः ॥ ७॥ इति श्री भगवद्गीता सूपनिषत्सु ब्रह्म विद्यायां योगशास्त्रे कृष्णार्जुन सम्वाद मेाक्ष संन्या प योगा नामाष्टादशोध्यायः॥ १८ ॥ संवत १८४५ माघमास उत्तम मामि गुक्ल पक्षे तिथी पंचमी ।। वाग्था वसे निषतं वैष्णव राम सेवग म्वयं पठनाथो ।। रुंठी मध्ये चामल टटे ।। यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहोन च यदभवत तत्सर्व क्षमता दवं प्रसिद्ध परमेश्वरः ॥ भापा-चित येकाकी कै सुन्यो ते अर्जुन यह धर्म । मिट्यो माह अग्यांन तुव पार छटो वित भर्म ॥ ७२ ॥ अर्जुन उवाच ॥ माह यां प्राइ मुरति एहा श्री भगवान । भया दृरि संदह अव तव अग्या परवान ।। ७३ ।। संजय उवाच ॥ हरि अर्जुन की वात पै मुनि जुमै या भाय । चिरज रूप अनूप अति राम हर्प चि (त) चाहि ॥४॥ परम हग्गै मन यह जु हाँ मुना यास परमाद । योगेश्वर श्री कृष्ण जू निज मुख कियो विवाद ।। ७ ।। वार वार मुमरत जु हाँ व संवादहि राज। मुनि अर्जुन अति प्रीत सा कह्यो भक्ति हित काज ॥ ७६ ॥ अद्भुत तप श्री कृष्ण को सुमिर मुमिर हो ताहि । हप होत मा वहुत यह विस्मय को निर्वाहि ॥ ७७ ॥ योगेश्वर श्री कृष्ण जू अर्जुन है जा ठार । तहां बिजय अरु नीति हे अष्ट संपदा पार ॥ ७८ ॥ यह गोता अद्भुत रतन श्री मुख किया वखांन । वार वार निरधार किय पराभक्ति को ग्यांन ।। ७९ ।। भक्तवस्य श्री कृष्ण जू यहै किया निरधार । करै भक्त रच्छा सवै यहे वेद का सार ॥ ८०॥ Subject:--गोता मूल और टीका हिंदी पद्यों में । Note. ---हरिवल्लभ भाषा रच्यो गोता रुचिर बनाय । सदाचार वर्णन कियो अष्टादश अध्याय ।। ८३ ॥ ___No. 71. Sata-Saiyi Tika by Hari Charana Dasa. Substance---Country-made paper. Leaves--364. Size--63" x 6". Lines por page -- 16. Extunt--7276 Slokas. Appearanco--old. Character--Nagari. Place of deposit---Lila Bhagawati Pra. sāda, Anūp-saliar, Bulandasahar. Beginning -xx कार है। पर्यायाक्ति प्रकार द्वै कछु रचना सौ वात ॥ १५॥ मूल !। मकरा कृत गोपाल के कुंडल साहत कांन ।। धस्यो समर हिय घर मनो यौढी लसत निसांन ॥ १६ ॥ टीका ॥ नायक के पछ को सषी नायिका को पाश्चर्ज साभा सुनाय के मिलायौ चाहति है ॥ मकर जो ग्राह
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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