________________
174
APPENDIX II.
निस्संग और निर्वैर होकर परमेश्वरार्पण बुद्धि से कर्म करने के लिये सर्वार्थ सार भूत अंतिम उपदेश करना ।
पृ० ४६-४८–भक्ति योग नाम का बारहवां अध्याय - व्यक्त और अव्यक्त उपासना का निरूपण । निष्काम कर्म करते हुए व्यक्तीपासना करने का उपदेश तथा भक्तिपूर्वक भगवान का ध्यान, ज्ञान आदि का उपाय, भक्तिमान पुरुषों को स्थिति, भगवत् प्रियता आदि विषयों का प्रतिपादन ।
पृ० ४८-५१ - क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग नाम का तेरहवां अध्याय - क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का वर्णन |
पृ० ५१-५३ – गुणत्रय विभाग योग नाम चौदहवां अध्याय - "त्रिगुण" वर्णन |
पृ० ५३ - ५५ - पुरुषोत्तम योग नाम पंद्रहवां अध्याय - परमेश्वर को सर्वव्यापकता, क्षराक्षर लक्षण तथा भगवान् के गुह्य पुरुषोत्तम ज्ञान आदि का प्रति पादन ।
पृ० ५५-५७ – देवासुर संपद् विभाग नाम का सोलहवां अध्याय - दैवी मोर आसुरी सम्पत्ति के लक्षण गुग्ण और विभाग आदि का वर्णन |
पृ० ५७-६० – श्रद्धात्रय विभाग योग नाम सत्रहवां अध्याय - त्रिविध श्रद्धा, त्रिविध ग्रहार, यज्ञ, तप, दान, ॐ तत्सत् ब्रह्मनिर्देश आदि विषयों का निरूपण ।
पृ० ६०-६०–माक्ष संन्यास योग नाम का अट्ठारहवां अध्याय - संन्यास और त्याग, कर्मत्याग, कर्मफल, निष्काम कर्म, कर्मत्रयदशा, कर्मसंग्रह, ज्ञान के तीन भेद, कर्म की त्रिविधता, कर्म बुद्धि, जगत्, चातुर्वर्ण की उत्पत्ति, स्वकर्माधरण से अंतिम सिद्धि, आदि का प्रतिपादन ।
No. 70. Śrīmad-Bhagavad-Gita by Hari Vallabha. Substance--Country-made paper. Leaves-- 50. Size--10” x 52". Lines per page -- 15. Extent -- 2000 Ślokas. Appearance--old. Character--Nagari. Date of manuscript-Samvat 1845. Place of deposit -- Edward Hindi Pustakālaya, Hatharasa (Aligarh).
Beginning.—श्रो कृष्णायनमः ॥ धृतराष्ट उवाच ॥ धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे मिळे जुद्ध के साज संजय मो सुत पांडवन कीनें केसे काज ॥ १ ॥ संजय उवाच ॥ पांडव सना व्यूह लखि दुर्जेयन ढिग बाइ । निजु आचारज द्रांग सैा वाल्या मेसे भाई ॥ २ ॥ पांडव सेना प्रति बड़ी ग्राचारज तू देखि । धृष्टद्युम्न तुव सिष्य तं व्यूह रचेा जु ं विशेखि ॥ ३॥ (मूल) - धृतराष्ट्र उवाच ॥ धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ब्रवीमि ॥ ७ ॥ सूर धनुकधारो बड़े अर्जुन भीम समान । द्वपद महारथ और पुनि