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________________ APPENDIX II. 173 यह उत्तर कि कर्म किसी से छूटते नहीं । अतएव यद्यपि सांख्य और योगदा निष्ठाएं हैं तथापि निष्काम कर्म योग ही श्रेयस्कर है आदि विषयों का प्रति पादन । पृ० १८-२१ - कर्म संन्यास योग नाम का चौथा अध्याय कर्म, अकर्म और विकर्म का भेद तथा प्रात्मापाय । ज्ञान का उपदेश करना तथा कर्मयोग और ज्ञान का पृथक् पृथक् उपयोग वतला कर युद्ध के लिये उपदेश करना । पृ० २१-२५ – संन्यान योग नाम का ५ वां अध्याय । अर्जुन का यह प्रश्न कि संन्यास श्रेष्ठ है अथवा कर्मयोग ? भगवान का यह निश्चित उत्तर कि मोक्षप्रद दोनों हैं पर श्रेष्ठ कर्मयोग ही है । ब्रह्मज्ञान और कर्मयोग की महत्ता बतलाते हुए समस्त कर्मों का निष्काम भाव से करते हुए भगवान् का अर्पण कर देने का उपदेश करना । पृ० २५-२९ - आत्म संयम अथवा ध्यानयोग नाम का ६ वाँ अध्याय । भगवान का सच्चा संन्यासी और कर्मयोगी का अर्थ और लक्षण आदि बताना, योग साधन की आवश्यकता प्राणीमात्र में योगियों को आत्मोपाय बुद्धि अभ्यास और वैराग्य से चंचल मन का निग्रह । तपस्वी, ज्ञानो और निरे कर्मों की अपेक्षा कर्मयोगी और उसमें भी भक्तिमान कर्मयोगी श्रेष्ठ है आदि विषयों का उपदेश करना । पृ० २९-३२-- ज्ञान विज्ञान योग नाम का ७ वॉ अध्याय । ज्ञान और विज्ञान का निरूपण । पृ० ३२-३४ - अक्षर ब्रह्मयोग नाम का ८ वाँ अध्यायः - ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदेव अधियज्ञ और अधिदेह की व्याख्या तथा भगवत् स्मरण और भक्ति का प्रतिपादन । ॐ कार का ध्यान, अव्यक और अक्षर पुरुष का परिचय, भक्ति से ब्रह्म की प्राप्ति तथा देवमान तथा पितृमाग मर्म का निरूपण यादि । पृ० ३४-३७ - राजविद्या राजगुह्य नाम योग का ९ वाँ अध्यायः - ज्ञान विज्ञान युक्त निष्काम भक्ति योग का महत्त्व वर्णन । पृ० ३७-४१ - विभूति योग नाम का १० वाँ अध्याय । भगवान् की विभूतियों का वर्णन | - पृ० ४१ ४६ - विश्वरूप दर्शन योग नाम का ग्यारहवाँ अध्यायः - भगवान का अर्जुन को अपना विश्वरूप अथवा विराट रूप का दर्शन कराना तथा भक्ति से 12
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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