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APPENDIX II.
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यह उत्तर कि कर्म किसी से छूटते नहीं । अतएव यद्यपि सांख्य और योगदा निष्ठाएं हैं तथापि निष्काम कर्म योग ही श्रेयस्कर है आदि विषयों का प्रति पादन ।
पृ० १८-२१ - कर्म संन्यास योग नाम का चौथा अध्याय कर्म, अकर्म और विकर्म का भेद तथा प्रात्मापाय । ज्ञान का उपदेश करना तथा कर्मयोग और ज्ञान का पृथक् पृथक् उपयोग वतला कर युद्ध के लिये उपदेश करना ।
पृ० २१-२५ – संन्यान योग नाम का ५ वां अध्याय । अर्जुन का यह प्रश्न कि संन्यास श्रेष्ठ है अथवा कर्मयोग ? भगवान का यह निश्चित उत्तर कि मोक्षप्रद दोनों हैं पर श्रेष्ठ कर्मयोग ही है । ब्रह्मज्ञान और कर्मयोग की महत्ता बतलाते हुए समस्त कर्मों का निष्काम भाव से करते हुए भगवान् का अर्पण कर देने का उपदेश करना ।
पृ० २५-२९ - आत्म संयम अथवा ध्यानयोग नाम का ६ वाँ अध्याय । भगवान का सच्चा संन्यासी और कर्मयोगी का अर्थ और लक्षण आदि बताना, योग साधन की आवश्यकता प्राणीमात्र में योगियों को आत्मोपाय बुद्धि अभ्यास और वैराग्य से चंचल मन का निग्रह । तपस्वी, ज्ञानो और निरे कर्मों की अपेक्षा कर्मयोगी और उसमें भी भक्तिमान कर्मयोगी श्रेष्ठ है आदि विषयों का उपदेश
करना ।
पृ० २९-३२-- ज्ञान विज्ञान योग नाम का ७ वॉ अध्याय । ज्ञान और विज्ञान का निरूपण ।
पृ० ३२-३४ - अक्षर ब्रह्मयोग नाम का ८ वाँ अध्यायः - ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदेव अधियज्ञ और अधिदेह की व्याख्या तथा भगवत् स्मरण और भक्ति का प्रतिपादन । ॐ कार का ध्यान, अव्यक और अक्षर पुरुष का परिचय, भक्ति से ब्रह्म की प्राप्ति तथा देवमान तथा पितृमाग मर्म का निरूपण यादि ।
पृ० ३४-३७ - राजविद्या राजगुह्य नाम योग का ९ वाँ अध्यायः - ज्ञान विज्ञान युक्त निष्काम भक्ति योग का महत्त्व वर्णन ।
पृ० ३७-४१ - विभूति योग नाम का १० वाँ अध्याय । भगवान् की विभूतियों का वर्णन |
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पृ० ४१ ४६ - विश्वरूप दर्शन योग नाम का ग्यारहवाँ अध्यायः - भगवान का अर्जुन को अपना विश्वरूप अथवा विराट रूप का दर्शन कराना तथा भक्ति से
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