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APPENDIX II.
करिहै मन माही । गोता पाठते दुर्लभ नाहो ॥ रोग रहित वहु सुष को करिहै । बिनु प्रयास भव सागर तरिहै ॥ सर्व सुभ ग्रह सब दिन ताके । सुनै पढ़ मन रातै जाके । सर्व शत्रु नसि जैहै तबही । गोता पाठ करै नर जबहो ॥ हाइहै मित्र कुटुंब के लोगा। चरु अरु अचर ते करि वहु भोगा ॥ अर्जुन सन जो कथा वषानो ॥ मा पढ़ि पढ़ि नर हाइहै ज्ञानो ॥ दोहा ॥ हरि हर गुरु चर अचर ये बंदि चरन सिर नाइ ॥ भवदुस्तर हर देव गिरि तरे कृष्ण मन लाइ ॥१॥ राधा कृष्ण सरोज रज मन मल धोइ बहारि ॥ शास्त्र रचन का वुद्धि माहि नाथ देहु चित चारि ॥२॥ पुर दलोप मंह बार करि पंक्ति विश्वेश्वर गेह । कृष्ण गीत भाषा रची गिरि हरदेव करि नेह ॥ इति श्रीभगवद्गीता सूपनिषत्सुब्रह्म विद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन संवादे हरदेव गिरि परमहंस कृत गीतार्थ भापा माक्षसंन्यास योगा नाम अष्ठादशोऽध्यायः ॥ १८॥ दोहा ॥ चन्द्र नभ नव ब्रह्म मिलि वर्प मास वैशाप। शुक्ल पक्ष एकादसी कृष्ण गीत रचि शाख ॥१॥ दोहा ॥ राम भरोसा राम वन राम नाम विश्वास ॥ रामचरन रति राम सेा मांगत तुलसीदास ॥ राम ॥ संवत १९०१ अगहन माम शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां रवि वासरे पाथो गोता भाषार्थ समाप्तम् ॥ सारठ ॥ सुरसरि तट पर ग्राम विरच्या श्री हनुमंत नृप ॥ गीता लिष्या मटोक दाम विसंभर वैठि तह || काहे को फिरत मूढ़ मन धायो................."भजहि न अजदु समुझि तुलसी तेही जेहि महेस मन लायो ॥१॥ Subject.-श्री मद्भगवद्गीता का पद्यों में भापानुवाद ।
पृ० १-बंदना, यास, शंकर, हरिहर गुरु, गणपति, शारदा और कानी को दो दोहों में, कवि परिचय ३२ दाहे में । ग्रंथ माहात्म्य २ दाहों में।
पृ०१-६-अर्जुन विषाद योग नाम प्रथमोऽध्यायः-अर्जुन का रणभूमि में निज गुरु, परिवागदि का युद्ध करने के लिए मुजित दग्व धर्म संकट में पड़ सहसा विमाहित हा जाना, उसके हृदय में विषाद उत्पन्न होना और अर्जुन का रथ पर बैठ जाना ग्रादि कथानों का वर्णन ।
पृ०६-१३-सांख्ययोग नाम द्वितीयोऽध्यायः--भगवान श्री कृष्ण का देह और मुख दुश्व की अनित्यता, मांख्य शास्त्रानुमार व्यक्त भूतों का अनित्यत्व आदि विषयों का प्रतिपादन करते हुए अर्जुन का युद्ध के लिये उत्तेजित करना तथा कर्मयोग के प्रतिपादन का प्रारंभ पार कर्मयोगियों के लक्षणादि का निरूपण करते हुए वाह्मो स्थिति का वर्णन करना।
पृ० १३-१८-कर्मयोग नाम का तीमग अध्याय- अर्जुन का यह प्रश्न कि कमी का छोड़ देना चाहिये अथवा करते रहना चाहिये और भगवान का