SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 170 APPENDIX II. प्रवाह तरु वाग सर कूप सुचक प्रवक ॥ गृहारम्भ देवालप हवन चक काष्टादि । कथारम्भ नव पात्र के चक्र शुभभव्यष्टादि ॥ ज्योतिष सारादिकन मै देषि विचार सुलेहु । दोषहु गुण गनि गुनि समुझि कार्य आर्य चित देहु ॥ रह संक्षेप सुदिन धरि व्यष्टि विषमता त्यागि । उग्र क्रूर नक्षत्र दिन तजि सजिए जग जागि ॥ राम नाम कलि कल्पतरु कोटि काम गति धर्म । अर्थ स्वार्थ परमार्थ पथ प्रद पद परम सुकर्म ॥ मुप्य मुख्य शुभ कार्य ये विद्या प्रद गुरु भांति । तथा सुगुरु दिन रवि दिनहु पाय होति शुभकांति ॥ ___Subject -महाराज श्री रामचन्द्र जी के गुणों का मुनि वाल्मीकि और नारद जी के संवाद द्वारा वर्णन किया गया है। केवल गुणों का ही वर्णन नहों बल्कि संक्षेप से सब रामायण का सार खोंचा गया है। तत्व विचार में पांचा तत्व अग्नि, वायु, आकाश, जल, पृथ्वी का गुरण प्रादि वर्णन है। सब इन्द्रियों के विषय तथा परस्पर संबंध का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् वैराग्य संबंधी वाते हैं। No. 68 (b). Śri Rāma Ratnāvali by Haribakhấa Simha. Substance--Badami paper. Leaves--29. Size 6" x9". Lines per page--17. Extent--174 Slokas. Appeaiance-new. Character Nagari. Place of deposit--Thakura Jagadambā Prasāda Zamindāra, Post office Karachhanā, Allāhābād. Beginning.-श्री गणपति श्री गुरु गिरा श्री शिव शिवा रमेश। श्री हनुमंत श्री संत पद बंदा हित अवधेश ॥१॥ श्री श्री सीताराम पदस सूत वंधु पितु मातु वंदा नंदा जिन्ह दयादृष्टि हृष्टि सरसातु । भक्ति शक्ति अनुरक्ति गति सुरति सुर्मात रति राम ॥ श्री रघुपति पद पदुम रज रेखा नख अभिराम ॥ ३ ॥ बंदी नूपुर किंकिणो हारा गद कंठादि माला मातो जोति लखि लाजत वैकु. ठादि ॥ ४ ॥ जाति उदाति सुहाति हिय जिय सिय पिय प्रिय केर ॥ सांझ सवेरहु देर दिन निस निस कर रवि ढेर ॥ ५॥ वंदा पीतांवर रुचिर कुंडल मुकुट छटादि ॥ चूरी कंकण चंद्रिका सारी नोल पटादि ॥ ६॥ श्री भू लोला हादिनी सखी सुचंद्र कलादि ॥ श्री सहजा शुभ गाइला सखी चारु शीलादि ॥ ७॥ श्री लक्ष्मणादि संघिनो संदीपिनि विद्यादि वंदो ज्ञाना क्षेमदा हेमा प्रद विद्यादि ॥८॥ धोरा धरा परा वरा प्रवरानंद सरूप भूप शिरोमनि राम पद विशद सुसदरस रूप ॥ ९॥ कमलाली पाली सकल लालो पाली सीय पीय हिय जीय गति सुविशाली जननीय ॥ १०॥ ___End.-ब्रह्मक कारणं केचिदंति तस्यांसां ब्रह्म चिद्रपमव्ययं ॥१॥ कोडतो रामभद्रस्य पावय्याति क्षणं प्रमा तावद्वह्म महेशाधासेंद्रा
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy