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________________ 169 composition--Samvat 1907. Place of deposit - Thakura Jagadambā Prasāda Zamindāra, Post office Karachhanā, Allahabad. APPENDIX II. Beginning. — श्रीराम || श्री रामायणशतक || श्री सीतारामचन्द्राभ्यां नमः ॥ दोहा ॥ श्री हिम तनया तनय श्री गुरु गौरोश नमामि । श्री सियेश पद वंदि श्री हनुमत पद प्रणमामि ॥ १ ॥ भरत लषण रिपुहन चरण वार वार शिर नाय । श्री रामायण शतक वर वरणत हो चित लाय || २ || बालमीकि मुनि प्रश्न किय नारद मुनि की पाय । भाषत है। संवाद साइ समुद्र वचन मन काय ॥ ३ ॥ श्री रामायण मूल जो आदि वालमोकोय || लिखा ताहि दाहा अपर चौपाई रमनीय || ४ || क्षमि मज्जन जानि जन है हरिवख़्श अजान । श्री गुरु गणपति राम की ममि (मोर) कृपा प्रधान ॥ ५ ॥ सत चित माद अगाध प्रति रामायन को अर्थ तदपि लिखा गुरु सां समुझि भाव यथार्थ समर्थ ॥ ६ ॥ अक्षर भाव प्रभाव भन्न कल निरमल मल हारि । पृथ्वीपाल सुवाल में लिखे। स्वमति अनुहारि ॥ ७ ॥ चौपाई ॥ वेद पाठ तप रत ऋपयेशा । मुनि वर गिरा ज्ञान उरगेशा ॥ नारद वात्मोकि पह गयऊ । वालमोकि मुनि पूछत भयऊ ॥ १ ॥ को मनुष्य जग में यहि काना । जित क्रोध अनिन्द्य प्रण पाला ॥ सत्य वचन वाचक गुणवंता । मनसाजित द्युतिमान सुसंता ॥ २ ॥ वीर्यवान कृतज्ञ बलवाना। सकल जीव हित करण सुजाना || अरु विद्वान सकन लीन्नायुत । प्रिय दर्शन अद्वैत धर्मरत ॥३॥ सरहु डरत केहि रग रिस कीन्हे । अस मनुष्य चाहत हम चोन्हें ॥ यह सनिवका मम अभिलाषा । वालमीकि तपमो यो भाषा ॥ ४ ॥ हे महर्षि तुम अस नर जान | समरथ हा करि कृपा वधान || वाल्मीकि के वचन स्वहाए || देव ऋषोश मनहि प्रति भाप ॥ ५ ॥ दाहा ॥ वाले बैलाकज्ञ ऋषि प्रेम हर्ष युत वानि । वाल्मीकि अब सुनहु जो पूछेहु कहीं वपानि ॥ ६ ॥ जे जे गुण कीर्तन किहेतु दुर्लभ हैं जग प्रानि । तद्यपि तं गुणयुत मनुज सुनहु कहव है। जानि ॥ ७ ॥ चौपाई || महाराज श्री क्ष्वाकु सुवंशा । प्रगट भए रघुकुल अवतंसा || जाम नाम था राम जान जन । महावीर्य एकाग्र चित्त मन ॥ ८ ॥ द्युति धृति बुद्धि सदन नय नागर | वाग्गीवक्ता शुभगुण सागर ॥ इन्दोजित श्रीयुत रिपुकाला | विपुल कंध अरु वाहु विशाला ॥ ९ ॥ कंबु कंठ कपाल अति सुन्दर । आायत वक्ष शुभ गण रक्षर || गुप्त यंत्र रिपुद्दन जन पाला ॥ भुज प्राजानु सुशिर शुवि (चि) भाला ॥ १० ॥ सदरशो प्रति विक्रम वाना । भिन्न भिन्न सब अंग समाना ॥ चिव्क मन र प्रताप गुग्णाला । पीनमु उर हग कमल विसाला ॥ ११ ॥ लक्ष्मीवान ज्ञान युत वोरा । शुभ लक्षण युत ग्रह रणधीरा ॥ सत्य संघ धर्मज्ञ यशस्वी । प्रजन्ह सहित कर अरु यश्वी (जस्वी ॥ १२ ॥ End. — तारा चन्द्र सुभानु ग्रह योग वली सब लग्न । सीता राम सुनाम जपि करो सकन भ्रम भग्न । नवान्नादि भूषन वसन धारण कारण चक्र | हल
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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