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________________ 168. APPENDIX II. संत हजुरी कहत है भेद जु अगम अपार प्रणाम कियै गुरु चर्ण को हजुरी मिटें मनोति प्रागै अब सुनि लीजियै पहल योग को रीति ५ चौपाई प्रथम विचार मन मांहि धरै तजै कुसंग संगति चित धरै पाठों पहर राम रंगि राता कनक कामिनी को तज साथा ___End.-संत हजुरो सुना सुंन गए पर्म सुंन मांहि ब्रह्म में मिल ब्रह्म हो भये सव में हम सव मे मांहि ३३१ चितरो नै हद वांधिया वारे वेद मां (ह) हि । संत १जुरी वास जित कहन सुनन गन गम नांहि ३३२ संत हजुरो मे कहा जोग जु पद्धति सार भूल न कीजे गुरु विना वरजत वारंवार ३३४ इति श्री जोग अद्भति. सार संत हजुरी कृत संपूर्णम् लिख्यतम् दिलि मध माधो दास जि कि वगैचि मघः समतः १९ छियालिस के शाल। Subject:-योगशास्त्र । No. 67. Name of book not given. Author's name Harusa. Substance--Country-made paper. Leaves--103. Size--6" x 5". Lines per page---11. Appearance--old. Character--Nagari. Place of deposit-Pandita Chandra Sēkhara Păuawāri. Beginning.-फूटा तारी गगरयारी निपट अनारी पनहारी ऊर्घ मुम्ब कुइया कैसे भरोगे उरझी हाथ रसरियारो । ईड़ा पिंगला मुखमन सखिया भूली वाट डगरियारो । भक्ती मुक्ति घर सास ननदिया हेग्त हुई है डगरियारी। हंस कहत सखि संग लगाइलै प्रेम में भीजो चुंदरियारी ॥ ___End.-सूना लगत आली गली भुजवदको गलं' वंशी वजत नाहि कही कहां जाऊंगे गैय्या चरत नाहिं वछरे पिवत नाहि कैसे कहा पाऊरो लकड़ी मगाओ आलो वृन्दावन के वृक्षन की जमुना के विवथ तीर चिता एक रचाओरी। हंस हिया उठत हूक विरहानल देत फूक श्याम चरन ध्यान धरि शीघ्र जरि जाऊरी॥ Subject.-विरह । Note--कवि का नाम हंस मालूम होता है, बहुत से पृष्ठ खो गए हैं, निर्माण संवत का पता नहीं चला। कृष्ण राधा के विरह की कविता है। No. 68 (a) Śri Rāmāyaṇa Sataka, Jñāna Prabha Sataka by Haribakhsa Simha. Substance--Badami paper. Leaves --56. Size--10" x 12. Lines per page--17. Extent--250 Slokas. ppearance-new. Character Nagari. Date of
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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