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APPENDIX II.
End. - दाहा ॥ फटिकाकत सी फैनसी और फनिराज समान कीरति तेरी पति फैली सकल जहान ३६ वार्त्ता ॥ फटिक की प्राकृत सी कही सेा फटिक सी कहिवै मै अर्थ सिद्ध होत हैं। ॥ प्राकत पद अधिक है । मूल || कवित्त ॥ येकै शब्द येक रथ को कहै दुवेर साई है कथित और पुनर उकत इहै ॥ अधर पयूष वैन कंद दंत कुंदकली अधर मयूष और कपोल चंपकई है पतत्प्रकर्ष दोष सुकवि सुहाते तहां जहां निरवाह वर्न रचना भई है । जुद्ध करि चंड भुज दंड वल वंड रामरावन की सैना पल मांहि मारि दई है ॥ ३७ ॥ कथित पति ॥ छ ॥ छ ॥ (अपूर्ण)
Subjeot.—कई कवियों की कुछ कविताओं में जा दोष आ गये हैं उनका दिग्दर्शन और संशोधन ।
No. 65 (d) Bansi Bisa by Gwala. Substance-Countrymade paper. Leaves-4. Size-11"x4". Lines per page-20. Extont— 140 Ślokas. Appearance-old. Charactor-Nagari. Place of deposit-Bābū Purushottama Dasa, Visrama Ghāṭa, Mathurā.
Beginning. — श्री जगदंबायैनमः ॥ देाहा ॥ अथ वंसो वोसा लिप्यते ॥ दावा ॥ वदत विहारी लाल की वंसो वोसा वेस ॥ विदुषवन विकसावहीं बुधिवन करै विसेस ॥ १ ॥ कवित्त ॥ और विष जेते तेते प्रान के हरैया होत वंसी के कटे की कभू जाइ न लहर है सुनतें ही येक संग रोम राम रमि जाइ जोम जारि डारै पारै वेकली गहर है ग्वाल कवि लाल तासां जारि कर पूछत सांच कहि दोजा जो ये मापुर महर है वांस में कि वैध मैं कि ओठ में कि फूक मैं कि अंगुरी को दाव मैं कि धुनि में जहर है १ याको रूप रंग सव सुंदर सरोर साहै वाको वदरंग यो भयामनाही भेस है यह तैा अनेकन क दूर होते इसि डारे वह डसैये केँ छर्के अंग येक देस है ग्वाल कवि यात्रा झरवैया तुहो ताकियत वाकै झरिवैयन की चहुंधा प्रवेस है येते गुन जादे तेरी बंसी बोच बनमालो याते विष झालीय ह व्यानो ते विसेस है २ कोने से विपन में के बांस की बनाई काँन्ह मांत करि दोनी तैं सिकार को जो बंसी है वह फांसे येक मीन यह फांसै लाभ नारि जानी जात प्रेम यह कोऊ देवसी है। ग्वाल कवि कहै वाको जलही मै चलै जार याका थल मांहि जोर जग में प्रसंसी है वह हरै कला प्रान विकला करत यह याते लला अद्भुत बनो तेरी बंसी है ॥ ३ ॥
End. - अथ मारन भला नाम नंद की सव हो निलज नदान तू । प्रानन कै
उछारसी मैव सोष सोष दोष गाहक भयेा है नये । छैल स्याम