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जाम जाम जर जारी पे ॥ दीप दीन दीपन की दीपति दवरि आइ जंव दीप दीपन में दीपत दिवारी पै ॥ १२ ॥ दोहा ॥ श्री जगदंबा राधिका त्रिभुवन पति की प्रान ॥ तिनके पद मै मन रहे श्री सिव दीजै दान ॥ २३ ॥ इति श्री भक्तभावन ग्रंथ संपूर्णम् ॥ संवत १९ ॥
APPENDIX II.
Subject. - ग्वान कवि कृत स्वरचित स्फुट ग्रंथों का संग्रह |
पृ० २५ जमुना लहरी ।
पृ०
४१
पृ० ४६
पृ० ५२ पृ ७२ पृ० ११७
श्री कृष्ण चंद जू का नप सिष । गोपी पच्चीसी ।
राधाष्टक, कृष्णाष्टक, रामाष्टक |
कवित्त गंगा जी के, देवी देवतान के, गणेशाष्टक, ध्यानादि । षट्ऋतु वर्णन, अन्योक्ति, मित्रता, आदि ।
No. 65 (c) Kavi - Darpana by Gwala. Substance-Countrymade paper. Leaves-35. Size-111" x 6". Lines per page22. Extent-1083 Ślokas. Appearance-old. Character-Nagari. Date of composition- Samyat 1891. Place of deposit-Pandita Navanita Chaube Kavi, Mārū Gali, Mathurā.
Boginning. - श्री जगदवायैनमः अथ कवि दर्पन लिष्यते ॥ मंगलाचरण || कवित्त ॥ जाके लघु गुर सुर घुर लग देपिवे को थकिंग सहस नैन इंद्र सुपदानी के सेस है हजार रसना हूं सा न पाया पार रहे कौन हाल विधि संकर सैनानी के ग्वाल कवि ध्वनि वरनातमक रूप होऊ ताही ते लसत लोक तीनो राजधानी के जंते हैं विमुष ते न मुष हैं मुषन मांहि वेई मुष मुष हैं जे सन मृष वानी के १ दाहा श्री वानी जू के चरन विघन जरावन ज्वाल सीस नाय कर जारि तिहिं प्रगति करत (कवि) ग्वाल २ वंदी विप्र सु ग्वाल कवि श्री मथुरा सुपधाम प्रगट किया या ग्रंथ का कवि दरपन यह नाम ३ संवत
ह - १
सि निधि सिधि ससी ग्रास्वन उत्तम मास विजै दसमि रवि प्रगट हुआ कवि टरपन परकास ४ वेदक नीत समान कर करियत का नवीन । दोष हरन लष कलफ लषि री परवीन ५ जो कवि दरपन सम सदां निरबै याहि नाइ | कविता आनन माहि तिहि दोष न दरसे आई ६ उदाहरन दृषनन पै इक ईक अपना राषि फेर पुराने कविन के रषिहां कवित सुसाषि ७ लिषत चले प्रायै सवै अगिले सुकवि अपार (1) भूल होय सेा लषि मुकवि लीजो ताः सुधार ८ पुराने घर के कारन यह सुविचार दोष दिषाय वनाइ पद देहां ताहि
सुधार ९