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APPENDIX II.
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रचवाया रससार ॥ २८ ॥ अथ प्रथम अवतरण यरंग ग्रंथ संबला (शृङ्गना) नुसारेण नमस्कार पूर्वक विश्वभोजन प्रकाश खंडदय संहितारंभं करोमि ॥ श्लोक ॥ नास्मदाचाय परंपराभ्यो नमो नमा भागवत बजेभ्यः । नमोनमोन्समुखामरेभ्योनमः श्रियै श्री पतये नमोस्तु ॥१॥ आवाहमा (यामि विश्वशं जानकी वल्लभं विभुम् । कौशल्या तनयं बोरं श्री रामं प्रकृतेः परं ॥ २ ॥ अथ ग्रंथात्थानिका श्लोक ॥ विश्व भोजन प्रकाशाख्य दिलंड संहितां हितां। करोभि वैद्यराजोहं नाम्ना गंगा प्रसादकः ॥ ३ ॥ वधवेन्द्र महाराज विश्वनाथाज्ञयाधुना । प्रोक्तानुकमिका क्रमणिका सैव रोच्यते लोकभाषा ॥ ४॥ टीका श्लोक चतुष्टय प्रथम अवतरण जाको कहत है तासा अर्थ का ज्ञान हे। इ इति मूल वलानुसारेण सुंखला कहावै ग्रंथ की प्रणालिका ताके अनुसार करि कै नमस्कार प्रथम इष्टदेव को करि भोजन विश्व प्रकास या ग्रंथ का नाम है ताको संहिता कहावै संग्रह ताको प्रारंभ में करतु हों इति अर्थ सिद्धान्त प्रथम श्लोक मैं गुरु इप्ट को नमस्कार है १.
x x x x x x x x x अथ श्री महाराज विश्वनाथी मिठाइ चौदह प्रकार व्याख्यान सात दूध के दाने पत्र के प्रथम दूध कि सात प्रकार तत्रं पेरा वरा को विधान बहुत रोजन की व्यानी गाइ भैसि को दूध ताजै दो सेर कस्तूरी मासे भर लांग लाइची दो मासे गुलाब के उड़े का पानी पाउ भर ये सब मिलाइ चांदी की कराही तथा कलइदार कराहो मै चढ़ाई काठ को करछली सेा तथा कन्नइदार से चलाइ उतजाइ मंद मंद पांच सा दोपहर में पोवा करिमै सा भूजे जामें दानो पिलि जाइ मौ पोवा की सरदी न रहै भुजावट को सुगंध पाइ जाइ तब बदाम पिस्ता साफ करि मिलाइ देइ पौ बूरो सुपेन सेर भर मिश्री पोसि कै अाध पाउ गरि मिलाइ हार्थान सेा रोछि रोछि पेड़ा बनाइ लेइ और बरफो बनावै तो बूरे को चासनि करि कै उतारि लेइ करछुलो सेा उलटि पलटि कछु ठंढो हो जाइ रवा परि गयो देपाइ तब पे. वाला पोवा औ वह दूंकी मिश्रो चासनो में मिनाह पूब चलाइ येक थार मै घी का हाथ लगाइ तामे जमाइ दंड में सोने चांदी का तवक लगाइ छुरी सै। कतरि करि थार मे परोसि श्री जनकनंदिनी रघुवर कुमार का भोग लगावे १.
End.-इन दोउ प्रकारनि मै और प्रकार तो सब जागथ की निधिनि मै माइ गये जे दो प्रथम के भक्ष्य मा भर्जन बांकी रहे सा चबेना प्रकार हो मे दाना बनत है जा निमित्त प्रम को चरबन नौ प्रकार को देस दिषाइ उनमे माल लिषते है इति सिदान्त पथ जवान को वहरि भुसी रहित जो भार के भूजे पव सा वहरि कहावै तिनि के गुन रुक्ष गुरु है देर मै पचनवालो है प्यास लगा उनवाली है पौ मेद रोग वमन कफ इनको नासनेवाली है १ अपूर्ण ॥