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APPENDIX II.
End.-अथ कलि सत सैली वर्णन ॥ कहुं महंत सुचि संत कहुं कवि सजन पंडित । गुण गण मंडित वदन जामु हृद ज्ञान अखंडित । नीति रीति पर. तीति निपुन नरपति गुग्ण मंदिर। वेद विदित करि कर्म धर्म मारग मै तत्पर । हैं संतत हरिभक्त शक्ति जिनकी जग जाहिर । कहि गंगा परसाद सदा कलि ते ते वाहिर || ०॥ इति श्री हाल कलिकाल चरित्र सैली वर्णनम् ॥
Subject.-कलिकाल चरित्र । श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित्र मानस के आधार पर । __No. 58. Viswa Bhojana Prakisa by Vaidyarāja Mathura Gangā Prasāda. Substance-Country-mado paper. Leaves -164. Size-10" x 73". Lines per page-24. Extent-10,000 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Place of Deposit-The Library of the lato Rājā Ramāsa Sinha of Kālā Kāúkara (Pratāpagadh). ___Beginving.-श्री गणेशायनमः अथ श्री वांधवपति रीमा नरेस महाराजाधिराजा श्री विस्वनाथ सिंह जू देव का विश्व भोजन प्रकास लिख्यने । अथ मंगलाचरण ॥ चौबाला दोहा ॥ रघुवर सरण लये वनै रघुवर सरण गये ॥ रघुवर सरण भये बनै रघुवर सरण नये ॥१॥ विश्वनाथ भगवान है रघुवंसो अवतार । तिन हित भोजन ध्यान करि भव भय भजत न वार ॥ २ ॥ अरे मंदमति मंध तू सुगम पंथ चित धारि । प्रभु हित करि संकल्प सव निज हित सुपहिं सम्हारि ॥३॥ अथ ग्रंथ उत्थानिका ॥ हंसवंश अवत्स नृप विश्वनाथ महराज ॥ ग्रंथ अनंत विलोकि विधि सूपशास्त्र लखि साज ॥ ४॥ रचवायो चित चावसे भोजन करता खास ॥ विश्वनाथ हित विश्व के भोजन विश्व प्रकास ॥ ५॥ गौरी नल मा भीम का पाक प्रकार लह्यो ॥ रवि सिद्धान्त प्रकास हूं ग्रंथ विचारि कह्यो । ६ ॥ अायुर्वेद प्रकाश व हु ग्रंथ बनाय सच्यौ ॥ अव ज्योनार विधान विधि वैद्य नरेस रच्यो ॥ ७॥ छन्द लल्लरी ॥ हुइ प्रसन्न मदराज प्रश्न कोन्हों पति सादर । किये ग्रंथ वहु कठिन वुद्धिमाननि को पादर ॥ अल्प वुद्धि कलि जोव हेतु तिनिके प्रयलाइक । प्राकृत भाषा रचहु होइ सब की सुषदायक ॥ ........................"रामानुज सिद्धान्त मत ॥ २३॥ ग्रंथ करता प्रादुर्भाव दाहा ॥ प्रायुर्वेद प्रकाश के किये ग्रंथ वह भूप । वैधन के उपकार हित सम धावत्तरि रूप ॥ २४॥ वैद्य अनेक हुजुर मैं मा मै अधिक सुजान ॥ ग्रंथकार पंडित चतुर हस्त किया निधान ॥ २५ ॥ तिनि में लघु विद्यार्थी गंगा नाम प्रसाद ॥ किये संस्कृत ग्रंथ द्वै तीस हजार हुलाद ॥ २६ ॥ नाम येक गंगा रहसि रसतरंग इक नाम ॥ दुजमायुर कुल जन्म हे दस भदावर धाम ॥ २७ ॥ वैद्यराज पाया विरद राजनि के दरबार ॥ विश्वनाथ करि कै कृपा