SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ APPENDIX II. 151 Subject.-विशिष्टाद्वैत का निरूपण करते हुए द्वैताद्वैत का प्रतिपादन । No. 54. Vyāha Vinoda by Gaņēša. Substance-Country. made paper. Leaves -60. Size--6" x 51". Lines per page-8. Extent-480 Slokas. Appearance-Old. Character-Nagari. Placo of Deposit- Tho Public Library, Bharatapur State. ___ Beginning.-श्री गणेशायनमः ॥ दाहा ॥ उंदर बाहन गजवदन सुंदर गवरी गोद । वुद्धि समुंदर सिव तनय मोदक कर करि मोद ॥१॥ सारद को सिर नाय के सिद्धि होत चहं काद। श्री बजेद्र वलवंत की वरनत व्याह विनाद ॥२॥ कवित्त ॥ पांचै कल्पतरुन की एक ही उदारता के रूप की वनाइ के रच्या है सज साजे हैं। वारहू दिवाकर के तेज औ प्रतापन के काटि विक्रम समाजनि समाजे है ॥ सोतन मुषद मा अनेक गुने चंद चंदन ते दंषि रूपवंत भूप काम राति लाजे है। श्री समेत अमे गम लक्ष्मण प्रतक्ष प्रभु श्री बजेद्र वलवंत के हिये विराजे ___End.-इन्हें दिव्य दिपत दिलीप मा दिगंतन ला मुजस समूह सरसात जाके नाम की । अश्वर्ज रूप भूप श्री ब्रजेद्र वलवंत माहनी समेत मन माहै काटि काम को ॥ प्रजा प्रतपाल चिरंजीव या गणेस कहै देमन कै दाता दीह दालति ललाम की। गौर स्याम रंग रूप सकल मुरंग करे भरे हे प्रताप तेज जैसे वस राम का ॥ ६४ ॥ दाहा ॥ महनन में जाने करो अरजी प्रथमहि प्राय । ता को श्री माजो सकन वकम्यो धन समुदाय ॥ क. चहन पहन महनन की तिन पे हे मुंदरी महामाद वंद साज श्री मत बजेंद्र बलवंत हू हू रवि देखिवे x x x x x x ॥ Subject.-भाग्तपुराधिपति वजेन्द्र वानवंत सिह का विवाह वर्णन । No. 55. Bhagavata Avatarnikā hy Ganusa Datta. Sub. stancu --Country-madı papur. Laves -68. _ --6" x 4". Linos por pago-5. Extent-3350 Slökas. Appearanco - Old. Character-Nagari. Date of Composition-Samvat 1812. Place of Deposit-Tho Public Library, Bharatapur Slato. ___Beginning.-श्री यादवेन्द्राजयति ॥ श्री मद्भागवत अवतणिका । द्वादश स्कंध ॥ प्रथम स्कंधादि ॥ मंगलाचरण ॥ कवित्त ॥ वानी है। भवानी इंदिरा है? इंदरानी तीनूं देव हाँ विधाँनी पही वांनी वेद श्याम की ॥ वमुधा में वेंनी अधेनी वर दनों सुरलोक की नरेनों थुनी सेनी जाके नाम की ॥ रूप राशि राधिका है? वैरिन को वाधिका हौँ सिद्धिनि की साधिका हौं जपे जाहि वांम की ॥ रस रूप रेहाँ मेरी जीभ तेन जैहों जु समुझि देखि एहो महारानी रानी राम की ॥ २ ॥ छपय ॥ परब्रह्म तें ब्रह्म ब्रह्म तें नारद पायौँ ॥ नारद तें पुनि व्यास यास पुनि शुकहि
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy