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________________ APPENDIX II. 149 No. 52. Jūāna Darpaņa by Dipa Chauda. Substance Country-made paper. Leaves 18. Size-8" x 91". Lines per page-17. Extent -.1052 Slokas. Appearance-Old. Character --- Nāgarī. Date of Manuscript-Samvat 1928. Place of Deposit-Sarasvati Bhandara, Jaina Mandira, Khurjia, Bulandasahar. Beginning.-४० नमः सिद्धेभ्यः ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ अथ ज्ञान दर्पण लिखते ॥ दाहा॥ गुण अनंत ज्ञायक विमल परम ज्योति भगवान ॥ परम पुरिष परमातमा साभित केवल ज्ञान ॥१॥ सवैया ॥३१॥ ज्ञान गुण मांहि जेय पासना भई हे जाकै ताकै सुध भाव मातम का सहज लषाव हैं। अगम अपार जाकी महिमा महित महा अचन अखंड एक ताको दरसाव है। दरसन ज्ञान सुख वोरज अनंत धारे अवि. कारी देव चिदानंद ही को भाव है ॥ असी परमातमा परम पदधारी जाकै दीपत उर दर्षे लषि निहचै मुभाव है ॥ २॥ देष ज्ञान दर्पण • मति परप्यण हाय अर्पण मुभाव को सरूप में करतु है ॥ उठत तरंग प्रातमीक पाई तु अरथ विचार किये आपनु धरतु हैं ॥ प्रातम कथन एक शिव ही के साधन है अलप अराधनके भाव को भरतु हैं ॥ चिदानंद राय के लषायवे को है उपाय जाकै सरधानी पद सास ता भरतु है ॥ ३ ॥ परम पदार्थ को देणे परमारथ है स्वारथ सम्प को अनूपम साधि लीजिये ॥ अविनासी एक मुषरासी सा है।घट हो में ताकी अनुभा मुधारस पीजिये ॥ देव भगवान ज्ञान कला को निधान जाकै उर में अनाय सदा काल थिर कीजिये || ज्ञान ही में गम्य जाकी प्रभुत्व अनंत रूप वेदि निज भावन में आनंद लहीजिये ॥४॥दसा है हमारी एक चेतन विराजमान पान परभावन सां तिहू काल न्यारी हे ॥ अपसरूप शुद्ध अठभवै पार्टूजाम आनंद को धाम गुण ग्राम विस्तारी है। परम प्रभा पवरि पूर्ण (प्रभाव परिपूर्ण) अखंड ज्ञान मुख को निधान लषि मान रीति हारी हैं। पैसी अवगाट गाट आई परतोति जाकै॥ कहै दीपचंद ताकी वंदना हमारी है ॥ ५॥ End.-कुप्पय ॥ परम अनूप ज्ञान जोति लछिमी करि मंडित ॥ अचल अमित पानंद सहज तै भयो अषंडित ॥ शुद्ध मय मैं सार रहत भव भार निरंजन । परमातम प्रभु पाय भव्य करि है भव भंजन ॥ महिमा अनंत सुष सिंधु मैं गण धरादि वंदि चतरण (वंदित चरण) ॥ शिव तिय वर तिहू लोक पति जय जय जय जिन वर सरण ॥ १९१ ॥ दाहा ॥ सकल विरोध विहंडनी स्यादवाद जुत जानि ॥ कुनयवाद मत पंडनी नमो देवि जिन वाणि ॥ १९२॥ अथ ग्रंथ पसंसा ॥ सवेया॥३१॥ पलष अराधन अषंड जोति साधन सरूप को समाधि को लषाव दरसावै है। याही के प्रसाद भव्य ज्ञान रस पीवतु है सिद्ध सै अनूप पद सहज. लषावे है ॥ परम
SR No.010837
Book TitleTenth Report on Search of Hindi Manuscripts for Years 1917 to 1919
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherAllahabad Government Press
Publication Year1929
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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