________________
148
APPENDIX II.
वृथा चल्या जाई ॥ लाडली लालहि लेहु लडाई ॥ छाडि कपट मन वच चितु दीजै ॥ अलि जैौ चरन कमल रस पीजै ॥ जिनके मन निश्चै यह चाई ॥ रस सुष की निधि तिनही पाई ॥ तिनही देह घरी या जग मै ॥ जाको मन लाग्यो या रंग में ॥ यह सिद्धांत विचारते विचार बुद्धि ध्रुव होइ ॥ तन मन के सव भर्म मल डारत पत्न मैं घेाइ || यह प्राकृत भाषा सुधी कीनो रसिक अन्य हित विचारत प्रति सुष हाइ ॥ १ ॥ इति श्री सिद्धांत विचार वचनका संपूर्णम् ॥
Subject. -भक्ति के सिद्धांत ।
No. 51 (c). Bhakta-uāmāvalī by Dhruva Dāsa. Substance — Country-made paper. Leaves - 6. Size - 72 " x 52". Lines por page—16. Extent— 120 Ślokas. Appearance--Old. Charactor— Nāgari. Place of Deposit - Sadguru-sadana, Ayodhya.
Beginning. - श्री सीतागमाय नमः || छप्पै || दामोदर गुरु कृपा ते हदे राम हिय में बसे । ध्यान जनकजा सहित रहित कामादिक नामी ॥ कृपा राम वर सिष्य रतनवर अंतरजामो ॥ नृपतिराम बन भजन भूत जति भव्य वषानी ॥ बलित (ते) मंत्र सुनाय करण संकर गति जाणो ॥ मंडलेस पूर्बीह कहे राम नाम अमृत रसे ॥ दामोदर गुरु कृपातं हरे राम हिय में बसे || १ || टाका || कृवाजी के सिष्य दामोदरदास ख्यात हदै रामसिष्य तिन हूं के कृपाराम भये हैं | तेई इतै प्राय दया छपरा विराजे गंगा सरजू के मध्य में निवास भल ठये हैं । कृपाराम जी के रत्नदास जो मुसिष्य भये तिनके नृपति राम जोग वत्न लये हैं चर्णामृत लेत में निहारि रूप संकर की बल ते सुनाय कर्ण राम मंत्र दये ॥ २ ॥ अधिकारी हरिदास संका मन आनि तिन्हें कही ममुकायम म जानिये ॥ नाद विंद दानो के प्रवृति कारी मंडलेस हायंगे स्वतंत्र ये वचन सत्य मानिये ॥ सुनि के संवाद सीम नाय बाले संकर जी सिष्य जो किया तो कृपा दृष्टि कछू पानिये | कृपा उनहो की जो गासमै में मिले तिनही को पाठो जाम इच्छा पहिचानिये ॥ ३ ॥
End. - कोई देश काल जानि कीलजू की आग्यां मानि सिष्यन समेत रैदास स्वामी आये हैं । तहां रमनीय जन भूमि द्रुमलता देषि मंदिर बनाय लली लाल धराये हैं | विनय विवेक शुभ शील दया लेह गेह नाभा जी को देषि संत सेवा में लगाये हैं। आपु किया उपाय काल मृषा न विताय गष्टजाम सेवा की रहस्य मन लाये हैं ॥ ७ ॥ कहं सैन कुंज कहूं मजन निकुंज कहूं भूषन वसन के निकुंज संगये हैं । कहूं भक्ष भाज्य लह्य चास्य पान भोजन के लल्लीलाल हेत पाक सदन बनाये हैं | कहूं महारास जोग मंहनी अनेक रचि वृंद वृंद प्रालिन के भेद वह गाये हैं। तदां निज रूप से सदेह गये प्राये नहीं ताके भेद एक नाभा स्वामी जू न पाये हैं ॥ ८ ॥
Subject. - कई भक्तों के संक्षिप्त चरित्र का वर्णन ॥